Book Title: Sramana 2016 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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संस्कृत छाया :
अथ तस्य दुष्टभावमज्ञात्वा तन्मया गृहीतम् । ततश्च प्रतिदिनं स उपचरति मामशुभभावः ।।७२।। गुजराती अनुवाद :
त्यारे तेना दुष्टयावने नहि जाणीने में अलंकारादि ग्रहण कर्या. त्यारबाद अशुभभाववालो ते हमेशा मारु सन्मान करवा लाग्यो. हिन्दी अनुवाद :
उसके बुरे विचारों को न जानती हुई मैंने वह आभूषण ग्रहण कर लिया। उसके बाद अशुभ विचारोंवाला वह हमेशा मेरा सम्मान करने लगा। गाहा :
आगच्छइ एगंते परिहास-कहाओ कहइ मह पुरओ।
सवियारं च पलोयइ दसइ अणुरत्तमप्याणं ।।७३।। संस्कृत छाया :
आगच्छत्येकान्ते परिहासकथाः कथयति मम पुरतः ।
सविकारं च प्रलोकयति, दर्शयत्यनुरक्तमात्मानम् ।।७३।। गुजराती अनुवाद :
मारी पासे एकांतमा आवीने विनोद कथाओ करवा लाग्यो. विकारपूर्वक मारी सामे जुवे छे अने पोतानो अनुराग बतावे छे. हिन्दी अनुवाद :
मेरे पास एकान्त में आकर विनोद कथा आदि करने लगा। बुरी नजर से मुझे देखता था और अपना प्रेम प्रकट करता था। गाहा :
अह अन्न-दिणे पिययम! पावेणं तेण मयण-मूढेण । अगणिय कुल-मज्जायं उज्झिय लज्ज सुदूरेण ।।७४।। बहु मन्निय अविवेयं भणिया एगंत-संठिया एवं ।
वम्मह-पीडिय-देहो सरणं तुह सुयणु! अल्लीणो ।।७५।। संस्कृत छाया :
अथान्यदिने प्रियतम ! पापेन तेन मदनमूढेन । अगणयित्वा कुलमर्यादामुज्झित्वा लज्जा सुदूरेण ।।७४।।
७४।।