Book Title: Sramana 2016 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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हिन्दी अनुवाद :
यहाँ से नजदीक ही हमारा मनोहर आश्रम है। हे बेटी! तुम वहीं चलो। क्योंकि तुम्हारा यहाँ रहना उचित नहीं है।
गाहा :
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वाय सीयल-पवणो एत्थ ओ तं अभिणव पसूया सि । सुकुमाल - सरीराए मा होज्ज विरुवयं किंचि ।। २३ ।।
संस्कृत छाया :
वाति शीतलपवनोऽत्र ओ ! त्वमभिनवप्रसूताऽसि । सुकुमारशरीराया मा भवेद् विरूपकं किञ्चित् ।। २३ ।।
गुजराती अनुवाद :
वळी अहीं बहु ठंडो पवन वाय छे, अने हमणा ज तारी प्रसूति थई छे. जेथी तारु शरीर सुकोमल होवाथी कांइ अनुचित न था ।
हिन्दी अनुवाद :
इसके अलावा यहाँ बहुत ठंडी हवा बह रही है और अभी तुरन्त तुम्हारी प्रसूति हुई है। तुम चलो ताकि तुम्हारा शरीर कोमल होने से कहीं कुछ अनुचित न हो जाय।
गाहा :
इय भणिय तावसीए नीया हं आसमम्मि रमम्मि ।
पडिजग्गिया य सम्मं निक्कारण- वच्छलत्तेण ।। २४।।
संस्कृत छाया :
इति भणित्वा तापस्या नीताऽहं आश्रमे रम्ये । प्रतिजागरिता च सम्यग्, निष्कारणवत्सलत्वेन ।। २४ ।।
गुजराती अनुवाद :
एम कहने तापसी मने पोताना आश्रममां लइ गइ. अने निष्कारण वात्सल्यताथी तेणीए मारी सारी सारसंभाळ करी ।
हिन्दी अनुवाद :
ऐसा कहकर वह तपस्विनी मुझे अपने आश्रम में ले गयी और बिना किसी स्वार्थ के वात्सल्यपूर्वक उसने हमारी साज-संभाल की।