Book Title: Sramana 2016 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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नभोगाभिनी विद्या दी और उस विद्या के प्रभाव से युद्ध करने पर उन्हें अपना राज्य मिल गया। गाहा :
तस्स भएण अहंपि हु समागओ पुर-वरीए चंपाए ।
जणणि-समेओ पासे मायामह-कित्तिधम्मस्स ।।४६।। संस्कृत छाया :तस्य भयेनाहमपि खल, समागतः पुरवर्यायां चम्पायाम् ।
जननीसमेतः पार्थे, मातामह-कीर्तिधर्मस्य ।।४६।। गुजराती अनुवाद :
तेना अयथी हुं पण मातानी साथे चंपा नगरीमां नाना (माताना पिता) कीर्तिधर्म राजा पासे आव्यो. हिन्दी अनुवाद :
उनके भय से मैं अपनी माँ के साथ चम्पानगरी में अपने नाना कीर्तिधर्म के पास आ गया।
गाहा :
तेणवि निय-देसंते दिन्नं गामाण सहस्सयं एगं।
तत्थ य जणणी-सहिओ भयवं! अच्छामि अहयंति ।।४७।। संस्कृत छाया :
तेनाऽपि निजदेशान्ते दत्तं प्रामाणां सहममेकम् । तत्र च जननीसहितो, भगवन् ! आसेऽहमिति ।।४७।। गुजराती अनुवाद :
तेमणे पण मने पोताना देशना छेवाडे रहेला एक हजार गाम आप्या. अने त्यां हे अगवन्! माता सहित हुं रहुं छु. हिन्दी अनुवाद :
उन्होंने भी मुझे अपने देश के किनारे रहे हुए एक हजार गाँव दिए। हे भगवन्! मैं वहीं अपनी माँ के साथ रहता हूँ। गाहा :
कइवय-दिणेहिं इंतो इमाइ अडवीइ वाणियग-सत्थो । मह पुरिसेहि विलुत्तो पत्तं वित्तं तहिं पउरं ।।४८।।