Book Title: Sramana 2010 10
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 13
________________ १२ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर-१० अथवा वह स्वयं अभिनवगुप्त को सुलभ नहीं थी। ऐसे अन्य आगम भी हैं जो अभिनवगुप्त में नहीं मिलते, किन्तु जिन्हें भावप्रकाशन उद्धृत करता है। इस प्रकरण में सत्त्व परिभाषा की व्युत्पत्ति भी ध्यान देने योग्य है। स्वयं भरतमुनि 'सत्त्व' शब्द को अनेक अर्थों में प्रस्तुत करते हैं जिनमें से एक अर्थ देह भी है- देहात्मकं भवेत् सत्त्वम्। 'प्राण' शब्द की उपर्युक्त व्युत्पत्ति देह पर ही लागू होती है। हेमचन्द्राचार्य ने विवेक में इन सबके उदाहरण भी दिए हैं। इस वैज्ञानिकता का सम्बन्ध लोक से है तथापि कवि द्वारा काव्य में भी उसे प्रदर्शित करने पर द्रष्टा सहृदय का चित्त प्रभावित होता और रसास्वाद तक पहुँचता है, इसलिए इन्हें अलौकिक भाव भी माना जा सकता है। हेमचन्द्राचार्य इनके निरूपण में मम्मट, अभिनवगुप्त और स्वयं आनन्दवर्धन से ही नहीं, इनके पूर्ववर्ती आचार्यों से भी आगे हैं। ४. हेमचन्द्राचार्य ने स्थायी भावों के स्थायित्व की पँहचान यह कहकर की कि इन भावों के विषय में कारण-जिज्ञासा नहीं होती। इन्हें स्वाभाविक माना जाता है। इस तथ्य पर हेमचन्द्राचार्य ने अभिनवगुप्त की पंक्तियाँ अपना ली हैं और लिखा है जात एव हि जन्तुरियतीभिः संविद्भिः परीतो भवति०००। ये पुनरमी धृत्यादयश्चित्तवृत्तिविशेषास्ते समुचितविभावाभावाज्जन्मध्ये न भवन्त्येवेति व्यभिचारिणः। तस्यापि वा भवन्ति विभावबलात् तस्यापि हेतुप्रक्षये क्षीयमाणाः संस्कारशेषतां नावश्यमनुभवन्ति। रत्यादयस्तु संपादितस्वकर्तव्यतया प्रलीनकल्पा अपि संस्कारशेषतां नातिवर्तन्ते, वस्त्वन्तरविषयस्य रत्यादेरखण्डनात् । यदाह पतञ्जलिः न हि चैत्र एकस्यां स्त्रियां रक्त इत्यन्यासु विरक्तः इति।।११ ५. सञ्चारी भावों के लिए हेमचन्द्राचार्य ने व्यभिचारी भाव शब्द का ही प्रयोग किया और इस निश्चय का समर्थन इन शब्दों में किया अमी स्थायिनं विचित्रयन्तः प्रतिभासन्त इति व्यभिचारिण उच्यन्ते। तथाहि ग्लानोयमित्युक्ते कुत इति हेतुप्रश्नेनास्थायितास्य सूच्यते । न तु राम उत्साहशक्तिमानित्यत्र हेतुप्रश्नमाहुः। __ भोजराज का यह उद्घोष कि चित्तवृत्तिरूप होने से सभी भाव अस्थायी होते हैं इसीलिए रत्यादि भावों को भी स्थायी नहीं कहा जा सकता। ऐसा हेमचन्द्राचार्य के समक्ष रहा होगा, किन्तु उसे उन्होंने मान्यता नहीं दी और

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