________________
वैदिक व श्रमण परम्परा में समान धार्मिक क्रियायें : ५३
पुत्र प्राप्ति १, पुण्य एवं स्वर्ग-प्राप्ति के लिए दान दिये जाने का उल्लेख है। संयुक्त निकाय में दानी द्वारा श्रमणों, ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र, गन्ध
आदि अनेक वस्तुएँ दान में देने का उल्लेख है। जातकों से विदित होता है कि दानपतियों द्वारा अपने अपने नगर में प्राय: छह-छह दानशालाओं के निर्माण की प्रथा प्रचलित थी।४ दुहद जातक में सामूहिक दान का उल्लेख है।४५ इस प्रकार हम देखते हैं कि वैदिक और श्रमण परम्परा में अनेक धार्मिक क्रियाएँ समान थीं। यदि इन धार्मिक क्रियाओं को वीतरागभाव से किया जाता है तो ये परम्परया मोक्ष-लाभ में सहायक होती हैं। सन्दर्भ-सूची १. काणे, पी.वी.- धर्मशास्त्र का इतिहास, तृतीय भाग, पृ. १३७१ २. वही पृ. १३०० ३. अग्निपुराण, अध्याय १०१, पृ. २३५ गीता प्रेस, द्वितीय संस्करण ४. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति ३/५७ हिन्दी अनु. मधुकर मुनि ५. आवश्यक नियुक्ति पृ. २८४ ६. वही ७. सांकृत्यायन, राहुल- बुद्धचर्या, पृ. ५०० ८. जातक, ५, पृ. ४७१-७२ ९. जातक, ६, पृ. २३४ १०. काणे, पी. वी.- धर्मशास्त्र का इतिहास, हिन्दी अनु.- चतुर्थ भाग, पृ. ८, ११. वही, पृ. २६ १२. वही पृ. २८ १३. वही पृ. ४२ १४. वही १५. उपासकदशांग- सूत्र, अभयदेव टीका, पृ. ४५ १६. उपासकाध्ययन ७/८/१९ १७. कोठारी, सुभाष- उपासकदशांग और उसका श्रावकाचार एक परिशीलन,
पृ. १८२ १८. मज्झिम निकाय, हिन्दी अनुवाद- राहुल सांकृत्यायन, पृ. १६६ १९. अंगुत्तर निकाय, भाग एक, हिन्दी अनुवाद- भदन्त आनन्द कौसल्यायन,
_पृ. १४७ २०. संयुक्त निकाय, भाग एक, हिन्दी अनु. जगदीश काश्यप, धर्मरक्षित, पृ. १८१