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गवेषणा
लेख
लेखक विषय
वर्ष अंक ई.सन् पृष्ठ भारतीय दार्शनिक चिन्तन में निहित अनेकान्त डॉ. सागरमल जैन दर्शन-तत्त्व मीमांसा एवं
ज्ञान मीमांसा ५२ १०-१२ २००१ ८४-१०२ जैन दर्शन की पर्याय की अवधारणा का डॉ. सांगरमल जैन दर्शन-तत्त्व मीमांसा एवं समीक्षात्मक विवेचन
ज्ञान मीमांसा ५२ १०-१२ २००१ १०३-११९ प्रवचनसारोद्धार : एक अध्ययन
डॉ. सागरमल जैन आगम एवं साहित्य ५२ १०-१२ २००१ १२०-१९० स्व. भंवरलालजी नाहटा : एक युगपुरुष एवं
समाज एवं संस्कृति ५३ १-६ २००२ १-१२ अनुपम प्रेरणा स्रोत (संक्षिप्त परिचय) डॉ. सागरमल जैन द्वारा गुणस्थान-सिद्धान्त की डॉ. धर्मचन्द जैन दर्शन-तत्त्व मीमांसा एवं ५३ १-६ २००२ १३-२४
ज्ञान मीमांसा पार्श्वनाथ के सिद्धान्त : दिगम्बर-श्वेताम्बर दृष्टि प्रो. सुदर्शनलाल जैन समाज एवं संस्कृति ५३ १-६ २००२ २५-३२ हिन्दी काव्य परम्परा में अपभ्रंश महाकाव्यों का महत्त्व साध्वी डॉ. मधुबाला आगम एवं साहित्य ५३ १-६ २००२ ३३-३८ भारतीय आर्य भाषाओं की विकास-यात्रा में साध्वी डॉ. मधुबाला आगम एवं साहित्य ५३ १-६ २००२ ३९-४३ अपभ्रंश का स्थान प्रकीर्णक साहित्य : एक अवलोकन
डॉ. अतुल कुमार प्रसाद सिंह आगम एवं साहित्य ५३ १-६ २००२ ४४-६२ जैन संस्कृति में पर्यावरण चेतना डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव
५३ १-६
२००२
६३-६७ पादलिप्त सूरिकृत 'तरंगवईकहा' (तरंगवती कथा) श्री वेदप्रकाश गर्ग आगम एवं साहित्य ५३ १-६ २००२ ६८-७० नाट्यशास्त्र और अभिनवभारती में शान्तरस की डॉ. मधु अग्रवाल आगम एवं साहित्य ५३ १-६ २००२ ७१-७९ अभिनेयता प्रतिपादन और विश्वशान्ति में इसकी उपादेयता
श्रमण अतीत के झरोखे में (द्वितीय खण्ड) : १०५