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जिज्ञासा और समाधान
सप्तभङ्गमयी जिनवाणी का वर्द्धन ) के रूप में प्रचलित हुआ। जैनेतर लोग गोबर से चित्रादि बनाकर सप्तपूत मां की कथा का श्रवण करते हैं।
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(४) दीपावली या दिवाली- दीपावली को दिवाली भी कहते हैं जिसका एक अर्थ यह भी कुछ लोग करते हैं- 'सांसारिक प्रपञ्चों का दिवाला निकालना' (कर्मों का नाश करना)। यह अर्थ भी भगवान् के परिनिर्वाण से जुड़ा है क्योंकि इस दिन उन्होंने सभी कर्मों (घातिया - अघातिया) से छुटकारा पा लिया था । चित्त की निर्मलता होने पर आत्मा में एक नाद होता है जिसके विस्फोट ( पटाका फूटना ) से सभी कषायें चूर-चूर हो जाती हैं। अतः हम जो रागद्वेष के जाल से जकड़े हुए हैं उसे हटाना है अर्थात् आत्म- घर की सफाई करना है। बाह्य अन्धकार के साथ आभ्यन्तर अन्धकार को भी इस दिन दूर करना चाहिए। यह इस पर्व का लक्ष्य है। जैसे तिल-तिल जलता दीपक प्रकाश देता है वैसे ही हमें तप द्वारा कर्मों को जलाकर आभ्यन्तर को प्रकाशित करना चाहिए।
करुणा, दया, प्रेम, इंसानियत और वात्सल्य को प्रजाजन में उड़ेलना चाहिए। जन्म-जन्मान्तरों से ईर्ष्या, घृणा, लोभ, मोह और अहंकार की जो एक मोटी से काली परत आत्मा पर चढ़ी है उसे यदि साफ करना है तो कषायों को जलाना होगा क्योंकि पवित्र हृदय में ही मानवता की दिव्य ज्योति जगमगाती है। गरीबों की गरीबी दूर कर उन्हें प्रकाश दीप देना चाहिए। उन्हें भरपेट खाना खिलाना चाहिए।
आज दिगम्बर जैन समाज में प्रातः काल पूजा के बाद महावीर निर्वाण का लाडू चढ़ाया जाता है और सायंकाल रात्रि में भी पूजा आदि की जाती है। व्यापारी वर्ग लेखा-जोखा करके गणेश और लक्ष्मी का पूजन करते हैं। कुछ जैनी भगवान् महावीर के साथ तिजोरियों से धन निकाल कर गणेश और लक्ष्मी की भी एक साथ पूजा करते हैं जो ठीक नहीं है। आतिशबाजी, जुआ आदि की कुछ विसंगतियाँ भी आज के दिन के साथ जुड़ गई हैं जो दीपावली की मूल धारणा के प्रतिकूल हैं। तान्त्रिक आज की रात्रि को मंत्र-सिद्धि का अनुकूल समय मानते हैं जो सांसारिक परिभ्रमण में कारण वस्तुतः जैन दृष्टि से दीपावली पर्व आत्मशुद्धि द्वारा आत्मा को केवलज्ञान की ज्योति से प्रकाशित करने का पर्व है।
है।
२. जिज्ञासा- 'नमोकार अथवा 'णमोकार' मंत्र के सम्बन्ध में जानकारी कु. सृष्टि जैन, भोपाल
दीजिए।