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जिज्ञासा और समाधान : ७९
इस मंत्र का सभी को प्रातः, मध्याह्न और सायंकाल अवश्य स्मरण (जप) करना चाहिए। यह नमस्कार मंत्र अहंकार का विसर्जन करता है। आत्मशुद्धि करता है। इस मंत्र के कई नाम हैं-पंच नमस्कार मंत्र, महामंत्र, अपराजित मंत्र, मूलमंत्र, अनादिनिधन मंत्र, मंगल मंत्र, परमेष्ठी मंत्र आदि। इस मंत्र में किसी देवता को नमस्कार नहीं किया गया है, अपितु जिन्होंने तप-ध्यान के द्वारा अपनी आत्मा का कल्याण किया है तथा जो आत्म-कल्याण के मार्ग में स्थित हैं तथा भविष्य में मुक्ति प्राप्त करने वाले हैं, ऐसे महापुरुषों को नमस्कार किया गया है। इस मंत्र के द्वारा किसी प्रकार की याचना नहीं की गई है फिर भी अपने आप कार्यसिद्धि होती है, जैसे अंजन चोर को आकाश-गामिनी विद्या की प्राप्ति, मरणासन्न कुत्ते को राजकुमार जीवन्धर द्वारा यह मंत्र सुनाने पर सुदर्शन नामक यक्षेन्द्र देवत्व की प्राप्ति। निन्दा करने पर सुभौम चक्रवती को सातवें नरक की प्राप्ति।
इस महामंत्र का संक्षिप्त रूप 'ॐ' है। 'ओम्' (अ + अ + आ + उ + म्) में पाँचों परमेष्ठियों के आदि अक्षर समाहित हैं, जैसे- अ = अरहन्त, अ = अशरीरी, सिद्ध, आ = आचार्य, उ = उपाध्याय और म् = मुनि (साधु)। कहा है
अरहंता असरीरा आयरिया तह उवज्झाया मुणिणो। पढमक्खर-णिप्पण्णो ओंकारो पंच परमेट्ठी ।। इसका दूसरा संक्षिप्त रूप है- अ-सि-आ-उ-सा नमः।
आप प्रश्न कर सकते हैं कि सिद्धों को पहले नमस्कार करना चाहिए क्योंकि उन्होंने आठों कर्मों को निर्जीर्ण कर दिया है जबकि अर्हन्तों ने अभी सभी अघातिया कर्मों को निर्जीर्ण नहीं किया है। इसका उत्तर है कि अर्हन्त ही हमें संसार-सागर से पार उतरने का समवसरण में दिव्य उपदेश देते हैं। अतः उन्हें प्रथम नमस्कार किया है। वे ही हमारे मार्ग दर्शक हैं। सिद्ध अशरीरी हैं उनसे साक्षात् उपदेश नहीं मिलता है। वस्तुत: “सिद्ध' और 'अर्हन्त' ये परमात्मा की दो अवस्थायें हैं- सशरीरी-अवस्था (जीवन्मुक्त या केवलज्ञानी) और अशरीरी-अवस्था (विदेहमुक्त या सिद्ध)।