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विद्यापीठ के प्रांगण में : ८३ से भी संस्था के अकादमिक कैलेण्डर में नूतन जीवन का संचार किया जाएगा। ग्रन्थालय (पाण्डुलिपि-ग्रन्थों तथा मुद्रित ग्रन्थों का भण्डार) तथा म्यूजियम को नया रूप देकर विस्तार किया जायेगा।
'तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ' पर संगोष्ठी सम्पन्न दिनांक २८.१२.२०१० को पार्श्वनाथ विद्यापीठ में 'तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ' पर उनकी जन्म जयन्ती (३१.१२.२०१०) के उपलक्ष्य में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि थे-प्रोफेसर इमरीट्स प्रो. रेवाप्रसाद द्विवेदी, सारस्वत अतिथि थे संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के डीन प्रो. आर. सी. पण्डा तथा अध्यक्ष थे स्वतन्त्र चिंतक श्री शरद कुमार 'साधक'। अन्य प्रमुख वक्ता थे प्रो. फूलचन्द्र जैन प्रेमी, प्रो. कमलेश कुमार जैन, डॉ. मुन्नी पुष्पा जैन, डॉ. अरुण प्रताप सिंह, साध्वी श्री सिद्धन्तरसा जी, साध्वी मैत्रीकला जी आदि। कार्यक्रम का संचालन तथा अतिथियों का स्वागत प्रो. सुदर्शन लाल जैन, निदेशक पार्श्वनाथ विद्यापीठ ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय, सहनिदेशक ने किया।
सभी वक्ताओं ने पार्श्वनाथ के बहुआयामी व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उनकी शिक्षाओं की आज के संदर्भ में उपयोगिता बतलाई। श्री शरद कुमार 'साधक' जी के पार्थिव शरीर का
अनुकरणीय दान 'तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ' पर आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे स्वतन्त्र चिंतक श्री शरद कुमार ‘साधक' का संगोष्ठी-समाप्ति के तुरन्त बाद अचानक हृदयगति रुक जाने से स्वर्गवास हो गया। अथक प्रयास के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका। आपके आदर्श थे महात्मा गांधी और विनोबाजी। समाजसेवा आपका लक्ष्य था। वे जैसा कहते थे वैसा ही आचरण में स्वयं लाते थे। ७९ वर्षीय साधकजी ने इसीलिये अपनी वसीयत में पहले से लिख दिया था कि मेरी मृत्यु के बाद मेरे शरीर के कण-कण का उपयोग समाजसेवा में लगे और उसे अस्पताल में दान दे दिया जाये। तदनुसार ही उनके परिवारवालों ने उनके पार्थिव शरीर को स्थानीय सरसुन्दरलाल अस्पताल का.हि.वि.वि. को दान में दे दिया।
आपका जन्म चारभुजा (मेवाड) में दिनांक २-८-१९३१ को हुआ था।