Book Title: Sramana 2010 10
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 88
________________ साहित्य सत्कार : ८७ नई दिल्ली, २०१० मेरठ ८. Sumati-Jnana, Editor Dr. Shiv Kant Dwivedi, Dr. Navneet Kumar Jain, Publisher-Acharya Shanti Sagar Chhani Smriti Granthmala, Budhana, Muzaffar Nagar, 9. Surya Prabha (Studies in Jainology) Chief Editor-Prof. Hampa Nagarajaia, Editor Prof. Arvind Kumar Singh, Dr. Navneet Kumar Jain, Pub. Acharya Shanti Sagar Chhani Smriti Granthamala, Budhana (U.P.), 10. History of Jainism, K.C. Jain, Vol-1,2,3 Publisher-D.K. Printworld (P.) Ltd., New Delhi, 2010. (ङ) सुदर्शनलाल जैन, निदेशक पार्श्वनाथ विद्यापीठ द्वारा भेंट शोध-प्रबन्ध १. सुबन्यु की वासवदत्ता : एक समीक्षात्मक परिशीलन- विश्वरंजन सिंह, २. विज्ञानभिक्षु प्रणीत योगसार संग्रह का समीक्षात्मक अध्ययनअशोक कुमार, ३. संस्कृत साहित्य में काव्य-लक्षण और काव्य-प्रयोजनआशारानी वर्मा, ४. श्री नेहरू चरितम् का समीक्षात्मक अध्ययनउदयनारायण पाण्डेय, ५. भारतीय दर्शन में भक्ति की अवधारणा- राकेश दत्त मिश्र, ६. सुदर्शनोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन- अर्चना सिंह, ७. मालविकाग्निमित्र और उसकी टीका का अध्ययन- लक्ष्मी देवी गुप्ता, ८. सर्वार्थसिद्धि एक अध्ययन- सविता अस्थाना, ९. प्रमुख पुराणों में श्री नारद- संतोष पाण्डेय, १०. वेदान्त केशरी : एक परिशीलनसुमन रटाटे, ११. महाकवि कालिदास कृत मेघदूत और मेरुतुंगकृत जैन मेघदूत- रविशंकर मिश्र. १२.श्रीलंका के सांस्कृतिक अनुष्ठानों पर वेदवेदांगों का प्रभाव- श्री विसुद्धि थेरो, १३. प्रमुख संस्कृत काव्यों में भक्तिरागिनी श्रीवास्तव, १४. वेदान्त में समाजवाद के स्रोत- ममता राय, १५. आचार्य विट्ठल नाथ विरचित गाररसमण्डलम्- शुचि अग्रवाल, १६. पञ्चाध्यायी : एक समीक्षात्मक अध्ययन- मनोरमा जैन, १७. जैन साहित्य में भक्ति की अवधारणा- धरमचन्द जैन, १८. वस्तुपाल की कृतियों का समीक्षात्मक अध्ययन- विवेक पाण्डेय, १९. नास्तिक दर्शन में कार्यकारण सिद्धान्त : एक मूल्यांकन- श्रीमती सुषमा सिंह, २०. ऋग्वेदीय और अथर्ववेदीय समाज का तुलनात्मक अध्ययन- नामवर सिंह, २१. तैत्तिरीयोपनिषद् का आलोचनात्मक अध्ययन-श्रीमती तारा देवी, २२. पण्डितराज जगन्नाथ के काव्य ग्रन्थों का समीक्षात्मक अध्ययन- मनुलता शर्मा, २३. संस्कृत साहित्य में यथार्थ- कमलेश कुमार, २४. विशेषावश्यक भाष्य के गणधरवाद एवं निह्नववाद की दार्शनिक समस्यायें एवं

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