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८८ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर - १०
समाधान - साध्वी विचक्षणश्री, २५. संबोधि का समीक्षात्मक अनुशीलनसमणी स्थित प्रज्ञा, २६. उदयनकथाश्रित संस्कृत रूपकों का समीक्षात्मक अध्ययन- उषा देवी, २७. उपरूपकों का उद्भव एवं विकास- इन्द्रा चक्रवाल, २८. भारतीय दर्शन में मृत्यु की अवधारणा - कल्पना पाण्डेय, २९. भारतीय दर्शन में गुण विचार- सुधांसु कुमार षडंगी, ३०. धनञ्जय की दृष्टि में रस : एक समीक्षात्मक अध्ययन- रेनू रानी, ३१. वेदान्त और जैन दर्शन में तत्त्वमीमांसा - पीयूषरानी अग्रवाल, ३२. आरण्यकों एवं उपनिषदों में वनस्पतियों एवं औषधियों का समीक्षात्मक अध्ययनकुमुद श्रीवास्तव, ३३. भारतीय दर्शनों में ईश्वर की अवधारणा - परमानन्द पाण्डेय, ३४. जैन चम्पू काव्यों का समीक्षात्मक अध्ययन- मणिनाथ मिश्र, ३५. शुक्ल यजुर्वेद में प्राप्त आयुर्वेदिक तत्त्वों का विवेचन - शशि श्रीवास्तव, ३६. जयदेव और उनका प्रसन्नराघव- परमेश्वर दत्त शुक्ल, ३७. भारतीय दर्शनों में कर्म सिद्धान्त - सुरेन्द्र कुमार पाण्डेय, ३८. विधिमार्गप्रपा के परिप्रेक्ष्य में जैन विधिविधान- साध्वी सौम्यगुणाश्रीजी, ३९. प्रमुख उपनिषदों की विवेचन पद्धतियाँ- राजीव अग्रवाल, ४०. जैन दर्शन में त्रिविध आत्मा की अवधारणा- साध्वी प्रियलता श्री, ४१. जयोदय महाकाव्य की समालोचनात्मक गवेषणा- श्रीमती रेणू जैन, ४२. भासकालीन सामाजिक अनुशीलन- श्यामसुन्दर दुबे, ४३. रूपगोस्वामी प्रणीत पद्यावली का समीक्षात्मक अध्ययन- श्रीमती आभा, ४४. श्रीमद्भागवत पुराण में योग तत्त्व - श्रीमती सविता, ४५. महामहोपाध्याय वासुदेव शास्त्री प्रणीत अद्वैतामोद का समीक्षात्मक अध्ययन- सीमा जैन, ४६. संक्षेप शारीरक सारसंग्रह - सीमा जैन, ४७. नैषधीयचरित महाकाव्य की श्लेष विच्छित्तियों का सांगोपांग अध्ययन - कविता शर्मा, ४८. भारतीय दर्शन में सापेक्षवाद - ऋचा चतुर्वेदी, ४९. जानकीहरणमहाकाव्ये महर्षिवाल्मीकेः प्रभाव- राघवकुमार झा, ५०. वाल्मीकि रामायण के अरण्यकाण्ड का समीक्षात्मक अध्ययन- अजय कुमार पाठक, ५१. पूर्व - मीमांसा एवं न्याय दर्शन में प्रमाण- प्रेमचन्द श्रीवास्तव, ५२. रूपगोस्वामी विरचित ललितमाधव - विदग्धमाधव का आलोचनात्मक अध्ययन- गीता श्रीवास्तव, ५३. नाट्यशास्त्र के आंगिक अभिनय का समीक्षात्मक अध्ययन - नीलम श्रीवास्तव, ५४. प्रस्थानत्रयी शांकर भाष्य में कर्म का स्वरूप - अंजुलता दुबे, ५५. वैशेषिक एवं जैन तत्त्वमीमांसा में द्रव्य का स्वरूप- पंकज मिश्र, ५६. जैन आगमों के आचार दर्शन एवं पर्यावरण संरक्षण का मूल्यांकन - मुनि भुवनेश विद्यार्थी, ५७. स्वामी सच्चिदानन्द