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७६ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर - १०
६. स्वामी दयानन्द सरस्वती की आज समाधि हुई थी। ७. जैन- परम्परानुसार कार्तिक कृष्णा अमावस्या को सूर्योदयकाल (चतुर्दशी सोमवार की रात्रि का अंतिम प्रहर तथा अमावस्या मंगलवार का उषाकाल) में चौबीसवें तीर्थङ्कर महावीर का करीब ७२ वर्ष की आयु में ई. पूर्व ५२७ (शक सं. ३०५ वर्ष ५ माह पूर्व वि.सं. ४७० वर्ष पूर्व) में परिनिर्वाण हुआ था। हरिवंश पुराण, तिलोयपण्णत्ति आदि की पौराणिक भाषा में जब चौथे काल (सुषमा - दुषमा) के समाप्त होने में ३ वर्ष ८.५ माह शेष रह गए थे तब तीर्थङ्कर महावीर का परिनिर्वाण हुआ था अर्थात् सर्वज्ञता के बाद २९ वर्ष ५ माह २० दिन बीतने के बाद तीर्थङ्कर महावीर ने अवशिष्ट चारों अघातिया कर्मों को नष्ट करके मोक्ष - लक्ष्मी का वरण किया था। इस पवित्र काल में चारों ओर एक अलौकिक प्रकाश फैल गया था। इसी दिन सायंकाल तीर्थङ्कर महावीर के प्रमुख शिष्य इन्द्रभूति गौतम गणधर को केवल ज्ञान हुआ था। इन दोनों आध्यात्मिक घटनाओं की खुशी में जैन दीपावली पर्व मनाते हैं तथा उनकी स्मृति में उस दिन से महावीर निर्वाण संवत् प्रारम्भ किया गया। आज वीर निर्वाण संवत् का २५३७ वाँ वर्ष चल रहा है। इसी तरह अन्य कई घटनाएँ दीपावली पर्व के साथ जुड़ी हैं। इस पर्व के साथ तीन अन्य पर्व भी भारतीय संस्कृति में जुड़ गए हैं जिनकी जैनधर्मानुसार व्याख्या इस प्रकार की जाती है—
(१) धनतेरस - कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी को भगवान् ने बाह्य लक्ष्मी समवसरण का त्याग करके मन, वचन और काय का निरोध किया था। उस योग-निरोध से भगवान् को मोक्षलक्ष्मी प्राप्त हुई थी। अतः मोक्ष - लक्ष्मी की प्राप्ति में निमित्तभूत त्रयोदशी धन्य (धनतेरस) हो गई। अतः आज के दिन बाह्य-संग्रह का त्याग करके रत्नत्रय का संग्रह करना चाहिए। न कि बाजार से सोना, चाँदी, बर्तन आदि खरीदना चाहिए।
(२) रूपचौदस - का. कृ. चतुर्दशी को भगवान् महावीर ने १८ हजार शीलों को प्राप्त कर रत्नत्रय की पूर्णता की थी तथा पूर्णरूप से अपने स्वरूप में लीन हो गए थे जिससे यह 'रूप चौदस का पर्व बन गया।
(३) गोवर्द्धन पूजा - कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा के दिन केवलज्ञान प्राप्ति के बाद स्वामी गणधर गौतम के मुखारबिन्द से सप्तभङ्गी अनेकान्त स्याद्वादमयी दिव्यध्वनि प्रथम बार प्रकट हुई थी। अतः यह दिन गोवर्द्धन पूजा (गो
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