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आचार्य हेमचन्द्र काव्यशास्त्रीय परम्परा में अभिनवगुप्त के प्रतिकल्प : ११
अनुभावास्तत् कथ्यन्ते व्यभिचारिणः ।
विभावा व्यक्तः स तैर्विभावाद्यैः स्थायीभावो रसः स्मृतः ।।
किन्तु यह भी सत्य है कि रससूत्र में स्थायी का उल्लेख नाट्यशास्त्र और ध्वनिवादियों के प्रमुख पक्षधरों में नहीं ही है। अभिनवगुप्त अनुल्लेख का ही समर्थन करते और कहते हैं कि यदि उल्लेख होता तो वही रसानुभूति में शल्य बन जाता। अनुल्लेख के समर्थक आचार्य उसे विभावतावच्छेदक के रूप में स्वतः संगृहीत मान लेते हैं। इनके अनुसार केवल दुष्यन्त नहीं, अपितु शकुन्तलाविषयकरतिमान् दुष्यन्त होगा सामाजिकों के लिए विभाव। सामाजिकों को यह विदित रहता है कि दुष्यन्त शकुन्तला के प्रति अनुरक्त है और शकुन्तला दुष्यन्त के प्रति। इस प्रकार रति नामक स्थायी भाव विभाव के साथ आया माना जा सकता है। हेमचन्द्राचार्य ने इस विवाद पर कोई टिप्पणी नहीं की। वस्तुतः रससूत्र का जो रूप नाट्यशास्त्र में उद्धृत है वह उसका तृतीय आकार है । 'चिदेव रसः' प्रथम आकार बनता है और 'भावविशिष्टा चिद् रसः' द्वितीय । हेमचन्द्राचार्य द्वारा उद्धृत स्थायियुक्त सूत्र रससूत्र की चौथी परम्परा में आता है । पाँचवीं परम्परा में उसमें सात्त्विक भाव भी जोड़ दिए जाते हैं। ध्वनिवाद में सात्त्विक भाव अनुभावों के साथ गिन लिए गये माने जाते हैं। यह पूरा विवरण हमने अपने नाट्यशास्त्र में विस्तार के साथ दे दिया है । ' ३. वैज्ञानिक प्रक्रिया
हेमचन्द्राचार्य ने सात्त्विकभावों की निष्पत्ति में वैज्ञानिक प्रक्रिया काव्यानुशासन की अलंकारचूडामणि नामक स्वोपज्ञ वृत्ति में इस प्रकार दी है
सीदन्त्यस्मिन्निति सत्त्वं प्राणात्मकं वस्तु, सत्त्वगुणस्यात्रोत्कर्षः, साधुत्वञ्च । अयं च पृथिवीभागप्रधाने प्राणे संक्रान्तचित्तवृत्तिगणः स्तम्भः विष्टब्धचेतनत्वम् । जलप्रधाने तु प्राणे वाष्पः । तेजसस्तु प्राणनैकत्वाद् उभयथा तीव्रातीव्रत्वेन प्राणानुग्रहे स्वेदो वैवर्ण्यञ्च । आकाशानुग्रहे गतचेतनत्वं प्रलयः । वायुस्वातन्त्र्ये तु तस्य मन्दमध्योत्कृष्टावेशात् त्रेधा रोमाञ्च-वेपथु-स्वरभेदभावेन स्थितिरिति भरतविदः । बाह्यास्तु स्तम्भादयः शरीरधर्माः अनुभावाः ते चान्तरालिकान् सात्त्विकान् भावान् गमयन्तः परमार्थतो रतिनिर्वेदादिगमका इति स्थितम् ।। ९
यहाँ 'भरतविदः' शब्द ध्यान देने योग्य है। अवश्य ही हेमचन्द्राचार्य को प्राप्त इस प्रक्रिया का भरतमुनि के नाट्यशास्त्र से सम्बन्धित कोई आगम रहा होगा। उससे सम्बन्धित जो अभिनवभारती रही होगी या तो वह प्राप्त नहीं है