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श्रमण, वर्ष ६१, अंक ४ अक्टूबर-दिसम्बर-२०१०
तत्त्वार्थसूत्र के कुछ बिन्दुओं पर विचार
डॉ. वन्दना मेहता
[ लेखिका का यह आलेख श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं के तत्त्वार्थसूत्रसम्बन्धी कुछ बिन्दुओं पर प्रकाश डालता है तथा तत्त्वार्थसूत्र को आगम-सम्मत सिद्ध करता है।]
तत्त्वार्थसूत्र जैन धर्म-दर्शन का एक प्रतिनिधि ग्रन्थ माना जाता है। यह जैन परम्परा का एकमात्र सूत्रशैली का ऐसा संग्रह ग्रन्थ है जिसे सभी आम्नाय समान रूप से स्वीकार करते हैं। इसे सभी सम्प्रदायों ने अपनी-अपनी परम्परा से जोड़ने का प्रयास किया है। ___मूल रूप से इस लेख में यह देखना है कि तत्त्वार्थसूत्र का मूल स्वरूप किस पर आधारित है? इसकी शैली किससे प्रभावित है तथा उसका अपना क्या वैशिष्ट्य है? ऐसा कहा जाता है कि जिस प्रकार बादरायण ने उपनषिदों का दोहन करके ब्रह्मसूत्रों की रचना द्वारा वेदान्त को व्यवस्थित किया है, उसी प्रकार उमास्वाति (दिगम्बर परम्परा में उमास्वामी) ने आगमों का दोहन करके तत्त्वार्थ की रचना के द्वारा जैन दर्शन को व्यवस्थित करने का प्रयास किया है। उसमें जैन तत्त्वज्ञान, आचार, भूगोल, खगोल, जीव-विद्या, पदार्थविज्ञान आदि विविध प्रकार के विषयों के मौलिक मन्तव्यों को मुल आगमों के आधार पर सूत्रबद्ध किया है तथा उन सूत्रों के स्पष्टीकरण के लिए श्वेताम्बर परम्परानुसार स्वोपज्ञ भाष्य की भी रचना की गई है। तत्त्वार्थ के मूल स्वरूप का आधार
इस विषय में पर्याप्त मतभेद हैं कि तत्त्वार्थ के मूल आधार श्वेताम्बर आगम हैं या दिगम्बर आगम षट्खण्डागम और कुन्दकुन्द के ग्रन्थ। इस विषय के स्पष्टीकरण में विद्वान्गण विस्तार से अपने-अपने मन्तव्यों को प्रस्तुत कर चुके हैं। अतः इसमें ज्यादा कहने की आवश्यकता नहीं है। ____ मुनि आत्मारामजी, पं. सुखलालजी, एच.आर. कापडिया, सुजिको ओहिरो' आदि ने स्वीकार किया है कि तत्त्वार्थ के मूल आधार श्वेताम्बर आगम * जे.आर. एफ. फैलो, जैन विश्वभारती, लाडनू।