Book Title: Sramana 2010 10
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 35
________________ ३४ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक ४/ अक्टूबर-दिसम्बर-१० से दूसरों का उपघात करने की कषाययुक्त चित्तवृत्ति रखना संरक्षणानुबन्धी रौद्रध्यान है।१७ रौद्रध्यान के चार दोष- (१) असन्न दोष- हिंसा प्रभृति दोषों में से किसी एक दोष में अत्यधिक लीन रहना। (२) बहु दोष- हिंसा आदि बहुदोषों में संलग्न रहना (३) अज्ञान दोष- मिथ्या शास्त्र के संस्कारवश हिंसा आदि प्रतिकूल कार्यों में धर्माराधना की दृष्टि से प्रवृत्त रहना। (४) आमरणान्त दोष- सेवित दोषों के लिये मृत्युपर्यन्त पश्चात्ताप न करते हुये उनमें अनवरत प्रवृत्तिशील रहना।८ स्वरूप की दृष्टि से धर्मध्यान के चार भेद इस प्रकार हैं-१९ (१) आज्ञा विचय- आप्तपुरुष का वचन आज्ञा कहलाता है। आप्तपुरुष वह है, जो राग-द्वेष आदि से असंपृक्त है। अत: वीतराग प्रभु की आज्ञा, प्ररूपणा या वचन के अनुरूप वस्तु तत्त्व के चिन्तन में मन की एकाग्रता। (२) अपायविचय- अपाय का अर्थ दुःख है, उसके हेतु राग-द्वेष, विषय, कषाय हैं, जिनसे कर्म उपचित होते हैं। ‘सर्व अपाय-नाश तथा आत्मसमाधि की उपलब्धि' इस ध्यान में चिन्तन का विषय होते हैं। (३) विपाक विचयविपाक का अर्थ है फल। इस ध्यान की चिन्तनधारा कर्मों के विपाक या फल पर आधृत होती है। (४) संस्थान विचय- लोक, द्वीप, समुद्र आदि के आकार का एकाग्रतया चिन्तन करना।२० धर्म ध्यान की पहचान निम्न लक्षणों से होती है (१) आज्ञा रुचि- वीतराग प्रभु की आज्ञा में, प्ररूपणा में अभिरुचि होना, श्रद्धा होना। (२) निसर्ग रुचि- स्वभावतः धर्म में रुचि होना। (३) उपदेश रुचि- साधु या ज्ञानी के उपदेश से धर्म में रुचि होना अथवा धर्मोपदेश सुनने में रुचि होना। (४) सूत्ररुचि- आगमोक्त सूत्रों में रुचि या श्रद्धा होना।२१ धर्मध्यान के चार आलम्बन इस प्रकार हैं... (१) वाचना- सत्य सिद्धान्तों का निरूपण करने वाले आगम ग्रन्थों या तत्सम्बन्धित ग्रन्थों को पढ़ना। (२) पृच्छना- अधीत या ज्ञात-विषय में स्पष्टता हेतु जिज्ञासा भाव से अपने मन में ऊहापोह करना, ज्ञानीजनों से पूछना, समाधान पाने का यत्न करना। (३) परिवर्तना- (अनुप्रेक्षा) ज्ञात विषय में मानसिक, वाचिक वृत्ति लगाना। (४) धर्मकथा (धर्मोपदेश)- धर्मकथा करना, महापुरुषों के जीवनवृत्तों के प्रेरक प्रसंगों द्वारा आत्मानुशासन में गतिशील होना।२२

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