Book Title: Sramana 2010 10
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 42
________________ पुण्यकुशलगणि विरचित भरतबाहुबलिमहाकाव्य में जैनधर्म एवं दर्शन : ४१ कारण आप द्वारा भरत की अधीनता स्वीकार न करना बताया। अत: आपको भरत की अधीनता स्वीकार कर लेनी चाहिए। यह सुनकर क्षत्रिय धर्म का पालन करने वाले बाहुबली, दूत की वाचालता एवं भरत की धृष्टता को जानकर हंसने लगे - दूत ! त्वत्स्वामिनो धायं, वाचालत्वं तवोद्धतम्। एतद्वयं ममात्यन्तं, हास्यमास्ये तनोति हि।। बाहुबली का यह हास्य उनके शौर्य और पराक्रम की पराकाष्ठा को व्यंजित करता है। “सर्वार्थसिद्धि' ग्रन्थ में धर्म के व्युत्पत्तिमूलक अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा है कि “इष्टे स्थाने धत्ते इति धर्मः'। अर्थात् जो हमें इष्ट स्थान की ओर ले जाता है वह धर्म है। अतः धर्म भी व्यक्ति-विशेष के लिए विशिष्ट होता है। बाहुबली स्वाभिमानी राजा थे। भ्रातृ-प्रेम और राजधर्म में राजधर्म प्रधान है। यही कर्त्तव्य-बोध भरत एवं बाहुबली दोनों को भ्रातृ-प्रेम को तिलांजलि देने का कारण बनता है और उसकी परिणति महायुद्ध में होती है। युद्ध ही राजाओं की नियामक मर्यादा होती है। सज्जन पुरुष अलंघनीय धर्म, अर्थ और काम का युगान्त में भी उल्लंघन नहीं करते हैं - सन्तो युगान्तेऽप्यविलङ्घनीयान् । धर्मार्थकामान् न विलङ्घयन्ति ।। धर्म वही श्रेष्ठ है जो लोक मंगलकारी हो। सांसारिक प्राणियों की रक्षा करना अहिंसा धर्म है। इस धर्म का मूल दया है - धर्मो नाम दयामूलः। बौद्धपाहुड़ में भी 'धम्मो दयाविसुद्धो' कहा है। दयाभाव से अन्त:करण में विद्यमान मोह, राग-द्वेष, हिंसा, क्रोध आदि कषाय-भाव नष्ट हो जाते हैं। यह दयामय धर्म दो प्रकार का होता है - सकल और विकल। सकल धर्म को धारण करने वाले जैन-मुनि होते हैं और विकल धर्म का पालन करने वाले श्रावक (सद्गृहस्थ) होते हैं। अत: सकलधर्म, मुनिधर्म तथा विकलधर्म गृहस्थधर्म कहलाता है। सकलधर्म का पालन जैन मुनि ही कर सकते हैं। घर आदि समस्त परिग्रहों का त्याग कर देने वाले मुनि सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन एवं सम्यग्चारित्र वाले होते हैं। श्रावक एवं मुनि-चरित पर टिप्पणी करते हुए अमृतचन्द्रसूरि ने बताया कि सर्वथा त्यागरूप महाव्रत के अधिकारी मुनिराज होते हैं और एकदेशत्याग रूप अणुव्रत के अधिकारी श्रावक या उपासक होते हैं। मोक्ष

Loading...

Page Navigation
1 ... 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138