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ध्यान : एक अनुशीलन : ३३ रहती है, अन्यत्र नहीं भटकती। दूसरे शब्दों में 'नाना पदार्थों का अवलम्बन लेने से चिन्ता परिस्पन्दवती होती है। उसे अन्य अशेष मुखों से लौटा कर एक विषय में नियमित करना एकाग्र-चिन्ता-निरोध कहलाता है। सूत्र में दिया गया 'एकाग्र' शब्द व्यग्रता की निवृत्ति के लिए है। ज्ञान व्यग्र होता है तथा ध्यान एकाग्र। जैन-आचार्यों ने ध्यान की उत्कृष्ट अवधि एक अन्तर्मुहूर्त (अड़तालीस मिनट से कम) तक मानी है। उनके अनुसार इसके बाद एक ही ध्यान लगातार नहीं रह सकता।११ ज्ञातव्य है कि यह चिन्तानिरोध अभावरूप नहीं किन्तु भावान्तररूप है।२ ।
एकाग्र-चिन्ता-निरोध रूप यह ध्यान आर्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान तथा शुक्लध्यान के भेद से चार प्रकार का है।१३ ये चारों ध्यान आगे चार-चार प्रकार के हैं तथा चार-चार लक्षणों से प्रत्यभिज्ञेय हैं। प्रथमतः इनमें से आर्तध्यान के चार प्रकारों को इस प्रकार बतलाया गया है। (१) अनिष्ट-संयोगेमन को प्रिय नहीं लगने वाले विषयों के या पस्थितियों के उपस्थित होने पर उनसे दूर होने अथवा दूर करने के सम्बन्ध में निरन्तर आकुलतापूर्ण चिन्तन करना। (२) इष्ट-वियोगे- मन को प्रिय लगने वाले विषयों का वियोग होने पर या इष्ट के प्राप्त होने पर उनके अवियोग अर्थात् वे सदा अपने साथ रहें, इस प्रकार निरन्तर आकुलतापूर्ण चिन्तन करना। (३) वेदनायाम्- रोग जन्य कष्ट हो जाने पर उनके मिटने के सम्बन्ध में निरन्तर आकुलतापूर्ण चिन्तन करना। (४) निदाने- पूर्व-सेवित कामभोगों की पुनः प्राप्ति हेतु निरन्तर आकुलतापूर्ण चिन्तन करना।१५ आर्तध्यान को निम्न चार प्रकार से भी जाना जा सकता है- क्रन्दनता (रोना), शोचनता (चिन्ता या शोक करना) तेपनता (बार-बार अश्रुपात करना), परिदेवनता (विलाप करना यथा-हाय! मैंने पूर्व जन्म में कितना बड़ा पाप किया जिसका यह फल मिल रहा है।) इत्यादि।२६
रौद्रध्यान के चार प्रकार इस प्रकार हैं- (१) हिंसानुबन्धी- हिंसा करना अथवा करने की योजनायें बनाना' आदि। (२) मृषानुबन्धी- दूसरों को छलने, ठगने, धोखा देने, छिप कर पापाचरण करने, झूठा प्रचार करने, झूठी अफवाहें फैलाने, मिथ्या दोषारोपण करने की योजनायें बनाते रहना आदि मृषानुबन्धी रौद्रध्यान हैं। (३) स्तेयानुबन्धी- तीव्र लोभ आदि के वशीभूत होकर दूसरे की वस्तु का हरण करने की चित्तवृत्ति होना स्तेयानुबन्धी रौद्रध्यान है। (४) संरक्षणानुबन्धी- शब्दादि पाँच विषयों के साधनभूत धन की रक्षा करने की चिन्ता करना और 'न मालूम दूसरा क्या करेगा?' इस आशंका