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[४] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क पत्र्ये कर्मणि दौहित्रस्यौरसत्वम्
२५६७ पैञ्य कर्म में दौहित्र का पुत्र के अभाव में औरस होना (७०१-७४४)। धर्मसेवनलाभः
२५६६ धर्मसेवन का लाभ (७४५-७६६ ) । सुतस्य कुलतारकत्वम्
२६०१ . पुत्र का कुलतारक होना (७६७-७८६)। निर्दष्टपुत्रयोग्यता
२६०३ निर्दुष्ट पुत्र की योग्यता (७६०-८०६ )। दण्ड्यानामदण्ड्यानां यथायथधर्मव्यवहरणम् .. २६०५
दण्डनीय और न दण्ड देने योग्य जनों का धर्म से व्यवहार करना ( ८१०-८३०)। दण्डविधानम्
२६०७ दण्डविधान वर्णन ( ८३१-८७१)। विप्रमहत्त्ववर्णनम्
२६११ वित्र का महत्त्व निरूपण (८७२-८६३)। नानाविधदानप्रकरणम्
२६१३ विविध दानों का वर्णन ( ८६४-६८०)।