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[ ५७ ] अध्याय
प्रधान विषय - पृष्ठाङ्क अन्य से करने पर, वाङ्मात्रदान करने पर श्राद्धमात्र होता है (१३५-१३८) । भ्रष्ट एवं पतितों का घट स्फोटन का अधिकार (१३६-१४०)। अनाथप्रेत के संस्कार करने से अश्वमेध यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है व प्रेत के संस्कार न करने में दोष (१४२-१४३)। विप्र की आज्ञा से यतिकृत्य ( १४४-१४७)। कर्ता के निकट होने पर अक कृत को फिर करे (१४८)। असगोत्रों के संस्कार में आशौच (१४६)। माता-पिता के मृताह का परित्याग होने पर प्रायश्चित्त ( १५०-१५१ )। नदी स्नान से निष्कृति या संहिता पाठ से ( १५२-१५६ )। वेदमहिमा ( १५७-१५६)। ब्राह्मण का वेदाधिकार ( १६०-१६३ )।
स्नान का सब विधियों में प्राधान्य (१६४) । सम्पूर्ण कार्यों में स्नान ही मूल कारण बताया है (१६५-१६७)। अस्पृश्य स्पर्शनादि कर्माङ्गस्नान ( १६८-१७१ )। वमन में स्नान (१७२ ) । वमन में स्नान न कर सके तो वस्त्र बदल ले (१७३-१७४)। शाकमूलादि के वमन में स्नान ( १७५-१७६ )। रात्रि में वमन में स्नान (१७७)। अपने गोत्र के छोड़ने पर अन्य गोत्र के स्वीकार करने का दोष (१७८-१७६ )। अर्धोदय, महोदय एवं योग का विधान ( १८०-१८३)। स्त्री के पत्यन्य के साथ चितारोहण होनेपर पुत्र का कृत्य ( १८५-१६१)।