________________
[ ५८ ] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क स्त्रीणां पुनर्विवाहे प्रायश्चित्तवर्णनम् २६६६
जातिभेद से निष्कृति ( १९२)। स्त्री के पुनर्विवाह में दोष जैसेपुनर्विवाहिता मूढः पितृभ्रातृमुखैः खलैः । यदि सा तेऽखिलाः सर्वे स्युर्वं निरयगामिनः ॥१६३।। पुनर्विवाहिता सा तु महारौरवभागिनी । तत्पतिः पितृभिः सार्धं कालसूत्रगगो भवेत् । दाता चाङ्गारशयननामकं प्रतिपद्यते ॥१६४।।
यदि मूर्ख एवं दुष्ट पिता व भाई आदि के द्वारा फिर स्त्री विवाहित की जाय तो वे सब नरकगामी होते हैं
और वह स्त्री महारौरव नरक में जाती है, व उसका विवाहित पति अपने पितरों के साथ कालसूत्र नामक नरक में गिरता है एवं देनेवाला अङ्गारशयन नामवाले नरक में जाता है। पुनर्विवाह के दोष निवारणार्थ प्रायश्चित्त का कथन ( १६३-२०४)।
भ्रान्ति से पुत्रिकादि विवाह होने पर चन्द्रायणादि करने से स्वमात्र की शुद्धि ( २०५-२०७ )। पुत्र होनेपर ब्रत का विधान (२०८-२११)। एक, दो, तीन और चार-पांच बार विवाहिता होनेपर प्रायश्चित्त ( २१२२१७)। उससे तो वेश्या की विशेषता (२१८-२२४ )। प्रविष्ट परपति के काय द्वारा संयोग होनेपर प्रायश्चित्त