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[ ६४ ] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क शाखा के ब्राह्मण की ही श्लाध्यता (७४१-७४२)। श्राद्ध में अभोज्य (७४३-७६८)। वरण (७६६-७७४)। प्रसाद के लिये दर्भदान (७७५-७७६ )। मण्डल पूजा (७७७-७७६ )। गुल्फों के नीचे धोना (७८०-७८१) । आचमन कर्ता के पहले भोक्ता का आचमन देवादि के भोजन की दिशा वरणत्रयकाल, विष्टर, अर्घ्य, आवाहन गन्धाक्षतादि दान (७८२-८०१)। अग्नौकरण फिर सङ्कल्प परिवेषण (८०२-८१७ )। परिवेषणे पौर्वापर्यवर्णनम्
३०३३ पौर्वापर्य में पहले सूप देना (८०८-८१४)। रक्षोन्न मन्त्र यदि असमर्थ हो तो दूसरे द्वारा बोला जाय (८५५-८१८)। गरम ही परोसना चाहिये ( ८१६८२५)। मन्त्र बोले जाय मन्त्रों की विकलता नाश के लिये वेद का घोष ( ८२६-८४८)। शास्त्र विरोधित्याज्य हैं (८४६-८६०)। तिलोदक पिण्डदान नमस्कार अर्चन, पुत्रकलत्रादि के साथ पितृ आदि की प्रदक्षिणा व नमस्कार (८६१-८६८)। मध्यम पिण्ड का परिमार्जन कर धर्मपत्नी को दे दे (८६६-८७२)। श्राद्ध दिन में शूद्र भोजन निषिद्ध (८७३)। पिता के भोजन के पात्र गाड़ दिये जायं ( ८७४)।