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[ ६५ ] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क श्राद्धे निमन्त्रितब्राह्मणपूजनवर्णनम् ३०४१
उद कुम्भ (८७५-८७७)। प्रथम वर्ष तिल तर्पण न करे सपिण्डीकरण के बाद श्राद्धाङ्गतर्पण (८७८-८८२)। श्राद्ध में निमन्त्रित ब्राह्मणों की पूजा का वर्णन (८८३-८४२)। पितरों के निमित्त रजत और देवता के निमित्त स्वर्ण मुद्रा दे। उपस्थान और अनुब्रजनादि का कथन (८६३-८६७)। कर्म के मध्य में ज्ञानाज्ञानकृत दोष का प्रायश्चित्त (८६८६०४)। उच्छिष्टादि श्राद्ध में सात पवित्र (६०५-६०६)। उच्छिष्ठ, निर्माल्य, गङ्गामहिमा, महानदी, नदियों का रजस्वलात्व, पुण्यक्षेत्र (६१०-६४२)। वमन (६४३६४५)। फिर श्राद्ध प्रकरण (६४६-६५०)।
अनुमासिक में उच्छिष्ट वमनमें व उच्छिष्ट के उच्छिष्ट स्पर्श में विचार (६५१-६५६ ) । एक दूसरे के स्पर्श में (६६०-६६४)। दर्शादि में छींक आने पर विचार (६६५-६७३)। अपुत्र की असापिण्ड्यता (६७४-७५) । पति के साथ अनुगमन में पत्नी का एक साथ ही पिण्डदान (६७६-६७८)। मृत के ग्यारहवें दिन या दूसरे दिन सहगमन में श्राद्ध (६८३-६८८)। यदि पत्नी ऋतुकाल में हो पति के मरण पर तो पति को तैल की कड़ाही में छोड़ दे और शुद्ध होने पर ही और्ध्वदेहिक