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अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क (६५७-६५६)। श्राद्ध देवता (६६०-६६४)। पित्र्य कर्मों में प्रदक्षिणा न करे । शून्य ललाट रहे गृहालङ्कार भी न करे (६६५-६६७)। मातृवर्ग में प्रदक्षिणादि व अलङ्कार (६६८-६७०)। श्राद्धभेद से विश्वेदेव, सापिण्ड वर्णन (६७१-६७५ )। आशौच दश, तीन और एक दिन रहता है ( ६७६-६८३ ) । अमादि श्राद्ध में कर्तव्य (६८४-६८७)। एकोद्दिष्ट के अधिकारी (६८८-६६३)।
अपिण्डक और सपिण्डक श्राद्ध (६६०-६६३ । छियानवे श्राद्धों की संख्या का विचार ( ६६४-७०० )। महालय, सकृन्महालय में भरण्यादि की विशेषता महालय का काल, यतियों का महालय, दुर्मूतों का महालय ( १०१-७०६ )। सुमङ्गली का श्राद्ध (७१०-७१६) । महालय से दूसरे दिन तर्पण ( ७१७-७१८)। रवि के उदय से पूर्व तर्पण ( ७१६ )। निमन्त्रणाहविप्राणां वर्णनम् . ३०२५
जीवपितृक श्राद्ध ( ७२०-७२२)। श्राद्ध में वैदिक अग्नि के अधिकारी (७२३-७२६)। अष्टकामासिक श्राद्ध (७२७-७३२) । श्राद्ध प्रयोग में निमन्त्रण के योग्य व्यक्तियों का वर्णन (७३३-७३६) । वेदहीन को निमन्त्रण देने पर निषेध एवं प्रायश्चित्त (७३७-७४०)। अपने