________________
[ ६१ ] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क (३५६)। भ्राता के पुत्र का परिग्रह (३६०-३६३) किसी पुत्र को लेने के लिये स्वीकृति होनेपर यदि
औरस पुत्र हो तो दोनों को रक्खे नहीं पाप लगता है (३६४-३६७) । पुत्रदान के समय में जो कहा गया उसे पूरा करना चाहिये (३६८-३७५)। भाई के पुत्र को लेने पर दिये हुए का समांश औरस गोत्र का चौथा हिस्सा ( ३७६-३८०)।
दत्तक से औरस उपनीत न होनेपर प्रायश्चित्त (३८१३८२)। भार्या पुरुष का पुत्र प्रहण (३८३-३८८)। उस समय की प्रतिज्ञा पूरी न करने से दोष (३८६३६६)। सपनियों में पुत्र के ग्रहण के समय जो रहे तो वह माता दूसरी सपनी माता (३६०-३६१)। अन्य मातामहादि का स्थान (३६१-३६५)। सपत्नी का पिता मातामह नहीं ( ३६६)। सपनी माता का तर्पण (३६६-३६८)।
औपासनानौ श्राद्धेऽप्रमादवर्णनम् २६६१
सपनी माता का औपासन अनि में श्राद्ध (३६६)। पन्नी की अग्नि (४००-४०१)। भाई के पुत्र के ग्रहण की विधि (४०२-४११)। विभाग में भाई बराबर है (४१२४१३)। कामज पुत्रों का वर्णन (४१४-४३३ )। हतादि