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[ ५६ ] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाडू (२२५-२२७)। अग्राह्य और ग्राह्यमूर्ति का वर्णन (२२८-२२६ )। अग्राह्यमूर्ति का निवेद्य (२३०-२३)। भगवत्प्रसाद ग्रहण में भक्षणविधि (२३६)। निवेदनविधि ( २४०)। अत्युष्ण निवेदन करने पर नरकगामी होता है (२४१-२४२) । निवेदन प्रकार ( २४२-२४५)। गृहस्थस्य रात्रावृष्णोदकस्नानवर्णनम् २६७५ निवेदित का स्वीकार प्रकार ( २४६-२४७ )। निवेदित वस्तु बच्चों को दे (२४८)। गृहस्थ द्वारा रात्रि में गर्म जल से स्नान (४४६-२५०)। अभ्यङ्ग का विधान (२५१-२५३ )। माध्याह्निक एवं क्षुर स्नान का वर्णन ( २५४-२५७ ) । प्रातः सायं पर्वादि में अभ्यजन स्नान ( २५८-२६२)। सोदकुम्भ नान्दी श्राद्ध में अभ्यञ्जन स्नान ( २६३-२६६ )। क्रोशस्थित नदी स्नान से श्राद्ध विधान (२६७)। सङ्कल्प (२६८-२७१)। पितृ श्राद्ध के व्यत्यास में फिर करने का विधान (२७२ )। शून्यतिथि में करने से फिर करे (२७३-२७४ )। पितृ श्राद्ध के बाद कारुण्य श्राद्ध (२७५-२७६ )। मातापिता का श्राद्ध एक दिन हो तो अन्न से करे (२७७२७६ )। चाक्रिक श्राद्ध ( २८०-२८१ )। ग्रहण में भोजन निषेध वृद्ध बाल और आतुरों को छोड़कर (२८२-२६१)।