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[ ६६ ] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क संस्कार करे (६८8-88५ )। उसका पिण्ड संयोजन (६६६)। अन्यगोत्रदत्तकपुत्रकृत्यवर्णनम् माता के सापिण्ड्य न होने का स्थल (६६७-६६८)। दत्तपुत्र का पालक पिता का सापिण्ड्य होता है (SEE)। दत्तपुत्र का औरसपिता के प्रति कृत्य ( १०००-१००५)। अन्य गोत्र दत्त का सपिण्डीकरण में विधान ( १००६१००८ )। कथातृप्ति ( १०१६-१०२१)। श्राद्ध दिन में वयं ( १०२२ )। श्राद्ध के दिन दान जप न करे ( १०२३-१०२७ )। दर्श में मृताह के श्राद्ध को पहले करे ( १०२८ )। मृताह के दिन मातामहादि का श्राद्ध हो तो मन्वादिक श्राद्ध करे ( १०२६-१०३१ )।
मताह में नित्यनैमित्तिक आ जाय तो नैमित्तिक पहले करे ( १०३२-१०३४ )। दर्श में बहुश्राद्ध हों तो दर्शादि को कर फिर कारुण्य श्राद्ध करे उसमें मतमतान्तर ( १०३५-१०४४)। किन्हीं का कल्प प्रकार ( १०४५-१०५६ )। भ्रष्टक्रिया का विधान, पतित की पच्चीस वर्ष के बाद क्रियायें हों ( १०६०-१०७२ )। श्राद्धाङ्ग तर्पण दूसरे दिन (१०७३-१०७५ )। उद्देश्य त्याग के समय सव्यविकिर न करे ( १०७६-१०७८ )। वमन में कर्ता के भोजन न करने पर अर्ध तृप्ति, तिल