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[ ५५ ] अध्याय . प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क होने से नहीं होता (४१-४३)। वैदिक कर्म का प्राबल्य (४४)। सूतिकाशौच एवं मृतकाशौच में वैदिक कर्म न करे, अस्पृश्यता आवश्यक है (४५-४८)। सतत आशौच होने पर श्राद्ध करने के लिये उस ग्राम को छोड़ दूसरे ग्राम में जाकर श्राद्ध करे (४९-५५)। शिखानिर्णयवर्णनम् शत्रु के द्वारा छिन्न शिखा हो जाने पर गौ के पुच्छ के समान बाल रखकर प्राजापत्य व्रत कर संस्कार से शुद्धि कही गई है (५६-५७)। मध्यच्छेद में भी वही बात है (५८ )। रोगादिसे नष्ट होने पर भी पूर्ववत् विधान है (५८-६०)। ७० वर्ष की अवस्था में शिखा न रहने पर आस-पास के बालों को शिखा के समान मान ले (६१-६३)। पांच बार शत्रु से शिखा छेद होने पर ब्राह्मण्य नष्ट हो जाता है (६४-६६)। सूतकादि से श्राद्ध में विघ्न होने से स्त्री संभोग होने पर गर्भ रहे तो ब्रह्महत्या व्रत का विधान (६६-६६)। विधायक श्राद्ध का वर्णन (७१-७६)। लाजहोम से पूर्व यदि वधू रजस्वला हो तो "हविष्मती” इस मन्त्र से सौ कुम्भों के विधान से स्नान कर वस्त्र बदलने से शुद्धि (७७-८१ )। लाजहोम के बाद होने पर स्नान करा