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अध्याय
[ ५३ ] प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क शुद्धाशुद्धिवर्णनम्
२६४७ आशौच का विशेष रूप से वर्णन-सूतक एवं मृतक आशौच का प्रारम्भ कब से माना जाय इसका निर्णय। रजस्वला के मरने पर तीन रात के बाद शवधर्म का कार्य सम्पादन किया जाय । शुद्धाशुद्धि का वर्णन (१४११६३)। स्पृष्टास्पृष्टि कहाँ नहीं होती इसका वर्णन (१६३)। दिन में कैथ की छाया में, रात्रि में दही एवं शमी के वृक्षों में सप्तमी में आंवले के पेड़ में अलक्ष्मी सदा रहती है अतः उनका सेवन न करे (१६४ )। शूर्प (सूप) की हवा, नख से जलबिन्दु का ग्रहण केश एवं वस्त्र गिरे हुए घड़ेका जल और कूड़े के साथ बुहारी इनसे पूर्वकृत पुण्य का नाश होता है (१६५) । जहाँ कहीं भी शुद्धि की आवश्यकता हो वहां-वहाँ तिलों से होम एवं गायत्री मन्त्र के जप से शुद्धि कही गई है (१६६) । दाल्भ्यस्मृति के सुनाने का फल (१६७)।
॥ दाल्भ्यस्मृति की विषय-सूची समाप्त ॥