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अध्याय
[ ३६ ] प्रधान विषय
पृष्ठा सुवासिनीनां शिरःस्नाननिषेधः
२७६१ हरिद्रास्नानविधिः
सुवासिनी स्त्रियों को ग्रहण, रजोदर्शन, मङ्गल कार्य, चण्डालस्पर्श एवं यज्ञ के आदि व अन्त इत्यादि कार्यों में शीर्षस्नान कहा है तथा हरिद्रा के चूर्ण को जल में प्रक्षेप कर स्नानविधि कही है ( ६४१-६४७)। पतिव्रताधर्माः
२७६२ पति की सेवा बड़े से बड़ा धर्म ( ६५३-६७०)। दुराचाररतां रण्डां दृष्ट्वा प्रायश्चित्तवर्णनम् २७६५
दुष्ट चरित्र युक्त रण्डाओं के देखने से प्रायश्चित्त का विधान कहा है ( ६७१-६८६)। नानादण्ड्यकर्मसु दण्डविधानवर्णनम् २७६७ नानादण्ड्य कमों में दण्डविधान का वर्णन (६८७-७०६)। नयप्राप्तराज्ये सर्वेषां सुखित्ववर्णनम् २७६८
नयप्राप्त राज्य में सभी के सुखी रहने का वर्णन (७१०-७२१)।
"॥ लोहितस्मृति की विषय-सूची समाप्त ॥
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