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अध्याय
[ ४२ ] प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क के बाद सर्व प्रथम भगवान् गोविन्द के दिव्य नामों का सङ्कीर्तन करते हुए वस्त्र और दण्डादि कमण्डलु लेकर अपने मस्तक पर कपड़ा बांध कर मल-मूत्र त्याग करने के लिये गांव के बाहर जावे। पेशाब, मैथुन, स्नान, भोजन, दन्तधावन, यज्ञ और सामूहिक हवन में मौन धारण करने की विधि है। यज्ञोपवीत को दाहिने कान पर टांग कर मल-मूत्र का त्याग करना चाहिये (१-६)। मलमूल करने में जो स्थान वर्जित हैं उनका परिगणन (१०-१२)।
मल-मूत्र त्याग के समय, देवता, शत्रु, शिष्य, अग्नि, गुरु, वृद्ध पुरुष और स्त्री को न देखे। अधिक समय तक मल-मूत्र न करे केवल आकाश, दिशा, तारा, गृह और अमेध्य वस्तुओं को देखे (१३-१४)। मिट्टी से गुदा और लिङ्ग को जल से धोवे। फिर हाथ धोकर दन्तधावन करे। स्नान के लिये तीर्थ, समुद्रादि, तालाब, कूप और झरने का जल विशेष प्रयोजनीय है ( १५-२०)। जल को अङ्गों से अधिक न पीटे न जल में कुल्ला किया जाय और देह का मल भी जल में न छोड़ा जाय. फिर बाहर आकर सन्ध्या कर्म के लिये स्थान को धोवे और कपड़े बदले (२१-२८)। स्नान प्रकरण के साथ नित्य कृत्यों का वर्णन (२८-६१)।