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[ ४३ ] . अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क ३ उपादानविधिवर्णनम्
२८१३ द्वितीयकाल में करने योग्य भगवत्पूजन आदि का वर्णन। भक्ति का लाभ जो श्रद्धालु एवं अपवर्ग के सुख को जाननेवाले हैं उन्हें ही मिलता है ( १-४६ )।
बाह्य और आभ्यन्तर शुद्धियों का वर्णन। भोजन को अनिदेव के समर्पण करने का वर्णन (५०-६०)। पाक में निषद्ध वृक्षों का इन्धन जलाने के लिये परिगणन (११-१०८)। निषिद्ध और ग्रहण योग्य वस्तुओं का वर्णन ( १०६-१२०)।
ग्राह्य और निषिद्ध पय का वर्णन (१२१-१३५)। भोजन बनाने में कुशल सती स्त्री एवं निषिद्ध त्रियों के लक्षण (१३६-१५०)। __ स्त्री के साथ सद्व्यवहार का वर्णन ( १५१-१५८ )। इस प्रकार भगवत्प्रीत्यर्थ उपादानों का उपयोग कर
गृहस्थ सुखी होता है (१५८-१६३)। ४ इज्याचारवर्णनम्
૨૮રહ एक देव की पूजा ही इष्ट है, भगवद्भक्ति विषयक नियमों का विस्तार से वर्णन । भागवतों की सदा पूजा . करनी चाहिये । विष्णुभक्त गृहस्थों के कर्मों का वर्णन भगवत्पूजा प्रकार, सच्छात्रों के श्रवण पठन का महत्त्व