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प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क
कटिस्नान, पादस्नान, कापिल स्नान, प्रोक्षणस्नान स्नातस्नान एवं शुद्ध वस्त्र धारण करने का विधान, जैसा शरीर माने वैसा करे ( १५६ - १६० ) ।
अध्याय
वायव्य स्नान का अन्य स्नानों से श्रेष्ठत्व वर्णन ( १६१ - १६७ ) । सन्ध्याओं का विधान (१६८-१७०) । साथ ही गायत्री जप का माहात्म्य ( १७१-१६८ ) । सन्ध्या ही सब का मूल है ( १६६ - २०६ ) । गायत्री मन्त्र का वैशिष्ट्य वर्णन ( २०७-२२३ ) । वेद पठन का अधिकार गायत्री से ही शक्य है ( २२३-२२८ ) ।
सम्यक्प्रकार गायत्री जप का फल वर्णन ( २२६२४१ ) । सन्ध्या, गायत्री और वेदाध्ययन का फल कब नहीं मिलता (२४२-२५६ ) । कलि में गायत्री मन्त्र का प्राधान्य (२६०-२६६ ) । मूक ब्राह्मण का वेदादि व वैदिक कर्मों के करने में योग्यता का वर्णन ( २७०२८० ) । वैदिक कृत्य की सब में प्रधानता (२८१-३००) । ब्रह्मार्पण बुद्धि से ही सब कर्मों का अनुष्ठान इष्ट है ( ३०१-३२५ ) ।
एक कार्य के अनुष्ठान में कार्यान्तर (दूसरा काम ) वर्जित है ( ३२६-३२७ ) । उपासना का महत्त्व ( ३२८-३३४ ) । गार्हपत्य अभि की स्थापना और उसके उपयोग का