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[ ४७ ] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क वर्णन (३४०-३४६ )। नित्य होम एवं अग्नि के उपस्थान का विधान ( ३५०-३५०)।
पञ्चपाक न करने की अवस्था में विकल्प का विधान (३६१-३७१)। पञ्चमहायज्ञों का निरूपण (३७२३८३)। ब्रह्मवेदाध्ययन में अधिकारी होने का वर्णन (३८४-३६४)। ब्रह्मज्ञान की एक साधना का उपासनाक्रम प्रयोग (३६५-४१४ )। अग्निहोत्र, दर्शादि एवं आग्रयण, सौत्रामणि और पितृयज्ञों का निरूपण (४१५-४२६)।
वेदों के अनभ्यास से मानव-चरित्र का सांस्कृतिक विकास सदा के लिये रुक जाने से राष्ट्र की अवनति होती है (४२७-४३३ )। चित्तशुद्धि के लिये वेदोक्त मार्ग ही श्रेयस्कर है (४३४-४३७)। चार पितृ कर्मों का वर्णन, उन्हें यथाशक्ति करने का आदेश (४३८४४३)। विविध ऋणों से छुटकारा पाने का प्रकार (४४४-४६८)।
वैदिक कर्मों की तुलना में अन्य कार्यों का गौणत्व वर्णन एवं दिव्य भाषा की योग्यता (४६६-४७७)। नित्यनैमित्तिक कर्मों में विष्णु का आराधन वर्णन (४७८ ४८१)। दौर्बाह्मण्य से मनुष्य सदा दूर रहे (४८३-४८८)। अमिष्टोम और अतिरात्रों का अनुष्ठान