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[ ४८ ] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क श्रेयस्कर है, सप्तसोम संस्था के पाकयज्ञों का विधान (४८६-४६४)। इन अनुष्ठानों को न करने से प्रत्यवायिक दोषों का निरूपण (४६५-४६७)।
ब्रह्मचारी के नित्यकृत्यों का वर्णन (४६८-५०२ । जातकर्म, चौल, प्राजापत्य, उपाकर्म आदि का विधान (५०३-५१३)। भिन्न-भिन्न अनुवाकों का वर्णन (५१४-५२६)। नाना काण्डों का वर्णन ( ५२६-५३७ )। ब्रह्मचारी वेदव्रतों का सम्पादन कर विधिपूर्वक स्नातकधर्म में दीक्षित हो (५३८-५४६) । गृहस्थ में प्रवेश के लिये लक्षणवती स्त्री से विवाह और उसके साथ वैदिक विधि से गृहप्रवेश व अग्निहोत्र का विधान (५४०-५४५)। गुप्ति होम का विधान ( ५४६-५४८)। औपासन कृत्यों का वर्णन (५४६-५४४)। गृहस्थ के लिये नित्य कर्तव्य विधि का वर्णन ( ५४५-५५३ )। फिर इष्ट कर्तव्य एवं अनिष्ट कर्तव्यों का परिगणन (५५४-५६२ )।
प्रातःकाल से सायंकाल तक के कर्तव्यों का निर्देश (५६३-५७३)। गृहस्थ भगवान् लक्ष्मीनारायण का ध्यान सदैव करे। गृहस्थ को आनेवाले सभी सम्मान्य गुरुजन अतिथि एवं विशिष्ट जनों की पूजा का विधान (५७४-५६०)। उपयुक्त पाकों का विधान और उनके करनेवाले स्त्री पुरुषों का वर्णन ( ५६१-६०१)। पंक्ति