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[ ४५ ] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाक कण्व द्वारा धर्मसार का निरूपण
धर्मकर्त्तव्यवर्णन-जिस व्यक्ति की बुद्धि ऐसी है कि क्रिया, कर्ता, कारयिता, कारण और उसका फल सब कुछ हरि है वही स्थिर बुद्धि का है, उसका जीवन सफल है (६-१०)। परमेश्वरप्रीत्यर्थ किया हुआ कर्म ही सफल है। सत्सङ्कल्प एवं उसका फल (११-६१)। नित्यनैमित्तिक कर्मों का फल निर्णय (४-५०)। नित्यकृत्य का वर्णन (५१-७४ )। प्रातःकाल में स्मरण करने योग्य कीर्त्य महानुभावों का वर्णन (७५-८०)।
प्रातः शौचनानादि क्रियाओं का वर्णन ( ८१-६४ )। गण्डूष के समय शब्द का निषेध और उसका प्रायश्चित्त का वर्णन (६५-६७)। भक्षण एवं खाने के समय भी शब्द करने का निषेध (६८-१०४)। मूत्र पुरीषोत्सर्ग में गण्डूष के बाद आचमन का विधान (१०५-११६)। गृहस्थों का मृत्तिका शौच का विधान (११७-१२६ )। शुभकर्मों में सर्वत्र आचमन का विधान ( १२७-१४०)। नित्यकर्मों में उलट-फेर करने से फल नहीं होता है (१४१-१५०)।
स्नान के समय आवश्यक कृत्य जैसे सन्ध्या, अर्घ्य, गायत्री मन्त्र का जप देवर्षिपितृतर्पण, स्नानाङ्गतर्पण अवश्य करने चाहिये (१५१-१५८)। कण्ठस्नान,