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अध्याय
[ ४१ ] प्रधान विषय
पृष्ठा भगवत्पूजनविधिवर्णनम्
२८०१ सात प्रकार की शुद्धि कर भगवत्पूजापरायण होना चाहिये। प्रथम शरीर को तपस्यादि से शुद्ध करे अशक्त हो तो दान करे और दोनों में ही असमर्थ हो तो नामसंकीर्तन करना चाहिये (८३-६५)। उपवास, दान, भगवद्भक्तों के सेवन, संकीर्तन, जप, तप और श्रद्धा द्वारा शुद्धि होती है (६६-१०१ ) । पराविद्याप्राप्त्यर्थमधिकारिगुरुशिष्यवर्णनम् २८०३
विद्या की प्राप्ति के लिये आचार्य का वरण और अधिकारी शिष्य का वर्णन ( १०२-११२)।
मन, वाणी और कर्म से भी शिष्य अपने गुरु का अहित न विचारे कभी उनके सामने प्रमाद न करे किसी भी प्रकार की उद्विग्नता उत्पन्न करनेवाले भाव, विचार, इच्छा व कर्मों को न करे। शिष्य मूढ़ पापरत, क्रूर, वेदशास्त्रों के विरोधी लोगों की सङ्गति न करे
इससे भक्ति में विन्न होता है ( ११३-१२२)। २ प्रातःकृत्यवर्णनम्
२८०५ ऋषियों का प्रातः कृत्य के विषय में प्रश्न और महर्षि शाण्डिल्य द्वारा स्नान सन्ध्या आदि को लेकर विस्तार से प्रातः काल के कर्तव्यों का वर्णन । शय्या को छोड़ने