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[ ३४ ] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क आपत्कल्प के इस विधान को शान्ति के समय काम में न ले। शुद्ध अन्न का प्रयोग जो अपनी अच्छी कमाई से लाया गया ही विहित है; सहव्य के द्वारा ही श्राद्ध करने का विधान उसका पाक भी श्राद्धकर्ता की स्त्री द्वारा शुद्धता से किया हुआ होना चाहिये। भावशुद्ध, विधिशुद्ध और द्रव्यशुद्ध पाक ही श्राद्ध में ग्राह्य है . (३६४-४०६)। श्राद्ध पाककर्तारः
२७३६ धर्मपत्नी, कुलपत्नी जो वंश में विवाहित हो, पुत्रवती हो, मातायें सम्बन्धियों की स्त्रियां, भूआ, बहिन, भार्या, सासु, मामी, भाई की त्रियां, गुरुपत्नियां और इनके न मिलने पर स्वयं श्राद्ध में पाक करनेवाले को प्रशस्त कहा है (४०७-४२०)। रण्डापाक और बन्ध्यापाक गर्हित बतलाया है (४२१)। हां कुल की कोई ऐसी त्रियां करनेवाली न हो तो उपर्युक्त सभी माताओं से पाकक्रिया सम्पन्न हो सकती है (४२२-४२६ )। मृतकार्ये कर्तुरनुकल्पनिषेधः
२७४१ स्वयं के लिये ही मृतकार्य के और्ध्वदेहिक कार्य का विधान वर्णित है (४२७-४३०)।