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[ ३३ ] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाक दौहित्र की श्राद्धादि कर्म में श्रोत्रिय ब्राह्मण से ज्येष्ठता ( ३३६-३४८)। प्रत्याब्दिकाकरणे प्रत्यवायः
२७३४ प्रतिवर्ष के श्राद्ध को न करने से प्रत्यवाय होता है, अतः जल, तण्डुल, उड़द, मूंग, दो शाक, पत्र, दक्षिणा, पात्र और ब्राह्मण ये दश श्राद्ध में उपयोग करने की वस्तुएं हैं, एक का लोप भी वाञ्छनीय नहीं। यदि आपत्काल हो तो उसके लिये अनुकल्प का विधान है (३४६-३६३)। श्राद्धद्रव्याभावेऽनुकल्पः .. २७३५
घृत के दुर्लभ होने से तैल उसका प्रतिनिधि आज्य उसके अभाव में दूध और उसके न मिलने पर दही यदि .. ये भी न मिलें तो पिष्ट के जल से मिला कर होमकर्मादिक करे। या फिर प्राप्त मधु से सब काम सिद्ध करे, किसी भी रूप में फल, पत्र और सुद्रव्य आदि से श्राद्ध . का कार्य किया जाय। . इनके अभाव में आपोशानादिक क्रियायें जल से और अन्न से सम्पादन कर पिण्ड प्रदान करे और जल में विसर्जित करे अविशिष्ट को काम में लें फिर दूसरे दिन तर्पण करे।