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[ ७ ] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क अस्पृश्य के छू जाने से १३ वार जल में नहाने से शुद्धि हो। रजस्वला स्त्री को यदि ज्वर चढ़ जावे तो वह कैसे शुद्ध हो इसके उत्तर में वाधूल ने बताया कि चतुर्थ दिन दूसरी स्त्री उसे स्पर्श कर दश या बारह बार आचमन कर अपने पहलेवाले कपड़ों को छोड़कर नये कपड़े पहन ले फिर पुण्याहवाचन के साथ यथाशक्ति दान करे (३१-४८)। भूमि पर गिरा हुआ जल गंगा के समान पवित्र है। चन्द्र और सूर्य ग्रहण के समय कुआ, वापी, तडाग के जल शुद्ध हैं। अपनी शौच क्रिया से निवृत्त होकर स्नान करे दोनों हाथों को मिला कर जल की अञ्जलि से जल में तर्पण करे जिस तीर्थ से जल लिया जाय उसीसे जलाञ्जलि देवे (४६-५६)। पूर्व की ओर मुख करके देवतागण को, उत्तराभिमुख होकर ऋषियों को और दक्षिण की ओर मुँह करके जल में पितरों को तर्पण करे । स्नान के लिये जाते हुए मनुष्य के पीछे पितरों के साथ देवगण प्यास से व्याकुल जल के लिये लालायित होकर वायुरूप होकर जाते हैं अतः देवर्षिपितृतर्पण किये बिना वस्त्र को न निचोड़े यदि वस्त्र निचोड़ा जाता है तो वे निराश होकर चले जाते हैं। सम्पूर्ण कर्मों की सिद्धि के लिये नदी, तालाब, पहाड़ी झरनों में प्रतिदिन स्नान करे (५७-६३) ।