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प्रधान विषय
अध्याय
२ मार्जनम्
"आपोहिष्ठा मयो भुवः” से मार्जन करे फिर न्यास करे, ऐसा करने से द्विजमात्र शुद्ध होकर ध्यान, जप, पूजा में सब सिद्धियां प्राप्त करते हैं ( ३३-३६ ) ।
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२६६०
२ पञ्चाचमनविधिवर्णनम्
२६६१
ब्रह्मयज्ञ में तीन बार आचमन का विधान है । श्रौत, स्मार्त, आचमन को किन-किन स्थलों पर करना इसकी विधि (४०-५७ ) ।
३ प्राणायामविधिवर्णनम् पश्चपूजाविधिवर्णनम् विलोमगायत्रीमन्त्रवर्णनम्
२६६३
२६६५
२६.६७
नानामन्त्राणां जपे तत्तन्मन्त्रेण प्राणायामः २६६६
प्राण और अपान का समयुक्त होना ही प्राणायाम कहलाता है, इसे सन्ध्याकाल और प्रत्येक कर्म के आरम्भ में मन को एकाम करने के लिये अवश्य करे । नौ बार उत्तम प्राणायाम, छै बार मध्यम और तीन बार अधम कहा गहा गया है ( १-३ ) । गायत्री मन्त्र और व्याहृतियों के साथ प्राणायाम करना चाहिये