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अध्याय
पृष्ठाङ्क
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प्रधान विषय धर्मपत्न्याः गृह्याग्निकृत्ये प्राबल्यम् २७१०
ज्येष्ठ पत्नी का ही सम्पूर्ण गृह्य अग्नि एवं पाक यज्ञादि में अधिकार एवं नित्य, नैमित्तिक तथा काम्य सभी कर्मों में उसी की प्रधानता है (६६-१०४)। मुख्य गृह्यामि के कार्य धर्मपत्नी के अधीन हैं। अतः वह कार्यविशेष उपस्थित हुए बिना कोई भी रूप में सीमोल्लङ्घन न करे अन्यथा गृह्य अग्नि लौकिक अग्नि हो जायगी और अग्नि की स्थापना फिर से करनी होगी ( १०५-१०६ )। किसी छोटी नदी को भी यदि मोह से पार कर लिया तो फिर नई प्रतिष्ठा अग्नि सन्धान के लिये करनी होगी (११०-११४)।
यदि ज्येष्ठ पत्नी कारण विशेष से उपस्थित न हो सके बाहर गई हुई हो तो द्वितीयादि अग्नि से श्राद्धादि विधि सम्पादित हो सकती है, परन्तु उसमें कोई भी विधि समन्त्रक नहीं हो सकती सभी अमन्त्रक करनी चाहिये (११५-१२६)। पूर्व पत्नी के न रहने से गृह्याग्नि की स्थापना के लिये जब दूसरा विवाह किया जाय तो पहले के घड़े से नूतन विवाहित स्त्री के घट में अग्नि की स्थापना की जाय (१३०-१३५)। अग्नि उसी समय भ्रष्ट हो जाती है, जब पत्नी चरित्र से दूषित हो (१३६-१४०)।