________________
[ २६ ] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क यदि द्वितीयानि से वेद प्रतिपादित कर्म किये जॉय तो ये फलदायक नहीं होते ( १४१-१५२)। अतः पूर्व पत्नी की गृह्याग्नि को दूसरे विवाह के बर्तन में स्थापित कर धमपत्नीवत् सारे काम किये जांय (१५३-१५५)। यदि किसी दुश्चरित्र माता के दूषित होने से पूर्व पति से सन्तान हुई हो तो वह सारे वैदिक कार्यों के करने का अधिकार रखती है, परन्तु दुश्चरित्र होने के बादवाली सन्तान किसी भी रूप में ग्राह्य नहीं ( १५६-१५७ )। कलियुग में पांच कर्मों का निषेध
अश्वालम्भ, गवालम्भ, एक के रहते हुए दूसरी भार्या का पाणिग्रहण, देवर से पुत्रोत्पत्ति एवं विधवा का गर्भ धारण ( १५८-१६६ )। द्वादशविधपुत्राः
२७१७ क्षेत्रज, गृढ़ज, व्यभिचारज, बन्धु, अबन्धु और कानीनज आदि १२ प्रकार के पुत्रों के भेद (१७०-१८६)। दत्तक पुत्र लेने और देने में माता-पिता ही एक मात्र अधिकार रखते हैं दूसरे नहीं १८७-२०८)। पुत्रसंग्रहावश्यकता
२७२१ पुत्र संग्रहण की आवश्यकता ( २२०)।