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[ २६ ] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क विधान (३०)। यदि मोह से दूसरी पत्नियों की अग्नि में यागादि का विधान किया जाय तो वह निष्फल होता है (३१-३६)। इसके लिये फिर से मुख्य अग्नि की स्थापना कर फिर विधान करना लिखा है (३७)। यदि धर्मपत्नी कहीं बाहर चली जाय तो वह अग्नि लौकिक हो जाती है। अतः प्रातः सायंकाल के नित्य हवन में धर्मपत्नी का उपस्थित रहना आवश्यक है ( ३८४२)। सीमान्तर जाने पर उस अग्नि का फिर सन्धान (स्थापना ) करना चाहिये। ज्येष्ठादिपत्नीनांतत्सुतानांजैष्ठ्यकानिष्ठयविचारः २७०५ __ सभी कार्यों में धर्मपत्नी की ज्येष्ठता मानी गई है भले ही दूसरी पनियां अवस्था में कितनी ही बड़ी क्यों न हों (४३-४५)। इसी प्रकार धर्मपत्नी से उत्पन्न पुत्र ही कर्मादि करने में ज्येष्ठता प्राप्त करेंगे क्योंकि दूसरी, तीसरी आदि से उत्पन्न पुत्र तो कामज है (४६-५२)। अपुत्राया दत्तकविधानवर्णनम् २७०७ दत्तपुत्र की जातपुत्र के समान स्नेहभाजनता एवं सम्पत्ति का अधिकार (५३-५४)। जिनके पुत्र न हों उन्हें अपने पुत्र के लिये प्रस्ताव करनेवाले की प्रशंसा (५५-५६)। जिसका पुत्र दत्तक लिया जाय उसे समाज