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[ १८ ] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क प्रकार, पूरक, कुम्भक और रेचक से सम्पूर्ण प्रकार के मलदोषों का नाश होकर शरीर की शुद्धि होती है और अध्यात्मबल बढ़ता है। तिलक धारण की विधि, पुण्डू
धारण इसके बिना सब कर्म निष्फल ( १०४ )। २ आचमनविधिवर्णनम्
२६५७ मुख्य तीन प्रकार के आचमनों का वर्णन, पौराण, स्मार्त और आगम, इनके साथ श्रौत एवं मानस आचमनों का वर्णन-मन्त्र जपने एवं नित्यकर्मों के आदि
और अन्त में आचमन करे। भगवान् के २१ नामों के साथ न्यास विधान (१-२०)। २ विधिवदाचमनस्यैवफलवर्णनम्
२६५६ गोकर्ण की आकृति बनाकर अंगूठे और सबसे छोटी अङ्गुली को छोड़कर अञ्जलि में जलग्रहण कर आचमन का विधान है इसी का फल है (२१-२३)। थूकने, सोने, ओढ़ने, अश्रुपात आदि से विघ्न होने पर आचमन करे या दक्षिण कान को तीन बार स्पर्श करे । भोजन के आदि में और अन्त में नित्य आचमन करे। मानसिक आचमन में भी केशवाय नमः, माधवाय नमः और गोविन्दाय नमः मन में बोलकर चित्त शुद्धि करे (२४-३२)।