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[ २१ ] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क करने से शीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है। प्राणायाम में मानसी पूजा का माहात्म्य (३०-३६)। प्राणायाम के बिना सब निष्फल है । विलोम गायत्री मन्त्र का वर्णन (३७-४६)। इससे सम्पूर्ण पाप, रोग, दरिद्रता दूर होते हैं (४७)।
विलोम गायत्री मन्त्र के जाप का फल सम्पूर्ण मन, वाणी और कर्म से किये गये पापों का नाश होना बताया है (४८-४६)। प्राणायाम न करनेवाला अवकीर्णी होता है उसे प्रायश्चित्त लगता है (५०-५२)। विशेष जिन-जिन मन्त्रों का विधान आता हैं उनके साथ भी पूरक, कुम्भक और रेचक क्रम से प्राणायाम करने का विकल्प है। चार्वाक, शैव, गाणेश, सौर, वैष्णव
और शाक्त जो भी मन्त्र हैं उन-उन से प्राणायाम की विधि फल देनेवाली है। भिन्न-भिन्न विधियों में प्राणायाम की १०, १५, २०, २४, १३, १४ और १६ बार आवृत्ति करने की विधि हैं । वैश्वदेव में १० बार आदि में १० बार अन्त में प्राणायाम करने का विधान हैं। जहाँ सङ्कल्प है वहां २ बार और सभी काम्य आदि कर्मों में १०-१० बार आवृत्ति का विधान है। विलोमाक्षरों से गायत्री का प्राणायाम अनन्त कोटि गुणित फल देता है ( ५३-७६ )। .........