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[ २२ ] प्रधान विषय
अध्याय
पृष्ठाङ्क
२६७१
मार्जनम् शिर से पैर तक "आपोहिष्ठादि” मन्त्र से मार्जन का फल । अर्ध मन्त्र और पूर्ण मन्त्र मार्जन दो प्रकार का है (१-५)। ऋग्यजुः साम वेद की शाखावालों का मार्जन क्रम। आपोहिष्ठादि के मन्त्र में प्रणव का उच्चारण करते हुए शिर पर मार्जन करे और “यस्यक्षयाय जिन्वथ से नीचे की ओर जल प्रक्षेप करे (६-१८)। शिर से भूमि तथा पादान्त मार्जन से अश्वमेध यज्ञ का
फल मिलता है। मार्जन की फलश्रुति(१६-२७)। ५ सार्घ्यदानगायत्रीमाहात्म्यवर्णनम् २६७४
सन्ध्यावन्दन के समय प्रातः और सायं तीन-तीन अयं सूर्य को दे, मध्याह्न काल की सन्ध्या में केवल एक ही। तीन अर्घ्य में एक दैत्यों के शस्त्रास्त्र नाश के लिये, दूसरा वाहन नाश के लिये और तीसरा असुरों के नाश के लिये और अन्तिम प्रायश्चित्ताय देकर पृथ्वी की प्रदक्षिणा से सब पापों से छुटकारा हो जाता है। गायत्री के पञ्चाङ्ग का वर्णन (१-२४)। ५ प्रायश्चित्तायविधिवर्णनम्
२६७७ नानामन्त्रविनियोगध्यानवर्णनम् २६७६