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[ २३ ] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क प्रायश्चित्तार्य की विधि का वर्णन-नाना मन्त्रों के विनियोग एवं ध्यान का वर्णन ( २५-४४ । ६ द्विविधजपलक्षणम्
२६८१ नैमित्तिक एवं काम्य दो प्रकार के जपों के लक्षण यह सन्ध्याङ्ग के रूप में नदीतीर, सरित्कोष्ठ और पर्वत की चोटी पर एकान्त वास में ही अधिक फल देनेवाला है (१-२)।
मूलमन्त्र से भूशुद्धि, फिर भूतशुद्धि, फिर रक्षाके लिये दिग्बन्धन करना और गायत्री के न्यास का वर्णन
(३४-३०)। ६ कराङ्गन्यासवर्णनम्
२६८५ दश बार मन्त्र का जप कर हृदय को हाथ से स्पर्श कर प्राणसूक्त जपे फिर प्राणायाम करे (३१-३२ )। अनुलोम एवं विलोम क्रम से करन्यास एवं हृदयादिन्यास एवं दिशाओं का बन्धन करे । ६ मुद्राविधिवर्णनम्
२६८७ आवाहन आदि के भेद से १० प्रकार की मुद्राओं का वर्णन, गायत्री जप के आरम्भ की २४ मुद्रा (३३-७१)। ७ उपस्थानविधिवर्णनम्
२६६० सन्ध्याकाल में सूर्योपस्थान का महत्त्व (१-२०)।