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[ २० ] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क (४-५)। पहले कुम्भक फिर पूरक और फिर रेचक, इस क्रम से प्राणायाम करना इष्ट है । सन्ध्या होम काल
और ब्रह्मयज्ञ में कुम्भक से आरम्भ कर प्राणायाम करे । प्राणायाम में करने योगाध्यान का वर्णन (६-१०)। दश प्रणव एवं गायत्री मन्त्र के साथ इडा और पिङ्गला को छोड़ सुषुम्ना नाड़ी से कुम्भक करे साथ में मन्त्र का स्मरण बराबर होता रहे (११)। रेचक और पूरक बिना प्रयास के होते हैं । कुम्भक में प्रयास करना होता है यह अभ्यास से शक्य है । अनभ्यास से शास्त्र विष का काम करते हैं, अभ्यास से वही अमृत बन जाते हैं। प्राणायाम के समय सिद्धासन से बैठे। प्राणायाम में चारों अङ्गुली और अंगूठा काम में लेना चाहिये। इस समय मन्त्र के उच्चारण के साथ-साथ उस-उस देवता की मानसां पूजा करनी चाहिये इससे विशेष फल मिलता है।
लं, ह, यं, रं, वं इन वीजों से पृथिव्यात्मा को गन्ध, आकाशात्मा को पुष्प, वाय्वात्मा को धूप, अग्न्यात्मा को दीप और अमृतात्मा को नैवेद्य प्रदान करे। इस पञ्च- . भूतात्मक मानसी पूजा से ही प्राणायाम की सिद्धि मिलती है (१२-२६)। प्राणायाम का अभ्यास सिद्धासन, कुम्भक के साथ और मन्द दृष्टि के रूप में आँखें बन्द