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[ १७ ] अध्याय प्रधान विषय .
पृष्ठाक अधम सन्ध्या के भेद । शुचि या अशुचि हो, नित्यकर्म को कभी न छोड़े (२२-२५) । तीनों सन्ध्या काल में या तो पूर्व की ओर या उत्तर की ओर मुँह कर नित्यकर्म करे। दक्षिण या पश्चिम की ओर मुंह करके नहीं (२६)। सन्ध्या नान किये बिना विद्या पढ़ना हानिकारक है, सन्ध्या काल आने पर उसे छोड़नेवाले को पाप लगता है (३०)। सोपाधि एवं अनुपाधि भेद से आचार के दो भेद-सोपाधि गुणवान् और अनुपाधि मुख्य है (३१-२६ )। गायत्री मन्त्र की विशेषता-प्रातःशय्यात्याग के बाद पृथ्वी का वन्दन भैरव की स्तुति, दक्षिण दिशा में जाकर मल-मूत्र आदि का त्याग करे (३२)। शौच का प्रकार (५३-५६ )। दन्तधावन और दतुवन के लिये वनस्पतियों का परिगणन (६३)। आचमन कर स्नान करने का प्रकार (६८)। सन्ध्यादि, तर्पण का विधान (७३)।
जलमान का विधान मन्त्रोचारण पूर्वक विशेष फलदायक है। तीनों कालों में स्नान का विशेष विधान (७८)। नान करनेवाले पुरुष के रूप, तेज, बल, शौच, आयु, आरोग्य, अलोलुपता, एवं तप की वृद्धि व दुःस्वप्न का नाश होता है। तर्पण की विशेषता (८७)। वाधारण में बसों के महत्त्व का वर्णन, प्राणायाम का