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[ १० ] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क और सायं काल सरस्वती का ध्यान करना चाहिये। प्रतिग्रह, अन्नदोष, पातक और उपपातकों से गायत्री मन्त्र के जपनेवाले की गायत्री रक्षा करती है इसलिये इसका नाम गायत्री है।
प्रतिग्रहादन्नदोषात्पातकादुपपातकात् । गायत्री प्रोच्यते यस्माद् गायन्तं त्रायते यतः ॥११॥ सविता को प्रकाशित करने से इसका नाम सावित्री और संसार की प्रसवित्री वाणी रूप से होने से इसका इसका नाम सरस्वती अन्वर्थ है (जैसा नाम वैसा गुण) (११२-११६)।
आपोहिष्ठेत्यादि मार्जन मन्त्रों में नौ ओङ्कार के साथ जो मार्जन किया जाता है उससे वाणी, मन और शरीर के नवों दोषों का क्षय हो जाता है (११७-१२०) । सायंकाल में अर्घ्य जल में न देवे जहाँ सन्ध्या की जाय वहीं जप भी हो । वेदोदित नित्यकर्मों का किसी कारण अतिक्रमण हो जाय तो एक दिन बिना अन्न खाये रहना चाहिये और १०८ गायत्री मन्त्र के जप दोनों सन्ध्या में विशेष रूप करे (११-१२६)।
सूतक और मृतक के आशौच में भी सन्ध्या कर्म न छोड़े प्राणायाम को छोड़ कर सारे मन्त्रों को मन से